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अलविदा 2018: राजनीतिक परिवर्तन,राजनेता और सरकार

सरकार औप विपक्ष.. अलविदा 2018: राजनीतिक परिवर्तन,राजनेता और सरकार

अलविदा 2018 के मौके पर देश की इस सल की ‘राजनीति‘ में गेम चेंजर पहलु और कुछ बड़ी घटनाओं के बारे में यहां आपको बताएंगे। गौतरलब है कि राजनीति में कब कौन किसका हो जाए, इसका अंजादा लगा पाना बहुत ही जटिल ही नहीं बल्कि मुश्किल भी है। राजनीति शब्द का मतलब ही है कि राज और सरकार के बारे में अध्ययन करना। इसी लिहाज से हमन यहां मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य को खंघालने की कोशिश की है। आइए जानते है कि कौन से तथ्य हैं जिनके कारण भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की विजय अभियान पर विराम लाग सका है।

 

सरकार औप विपक्ष.. अलविदा 2018: राजनीतिक परिवर्तन,राजनेता और सरकार
अलविदा 2018: राजनीतिक परिवर्तन,राजनेता और सरकार

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BJP की 5 राज्यों में हार , मोदी विजय रथ विराम के कारक..

जी हां, हम उस विराम की बात कर रहे हैं जो हाल ही में पांच राज्यों मं हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार हुई और खास बात यह है कि इन पांच राज्यों में से तीन में बीजेपी सत्ता में थी। बता दें कि राजनीतिक विद्वानों के मुताबिक इस हार का मुख्य कारण किसानों की मोदी सरकार से अपेक्षा के मुताबिक किसानों की समस्याओं की अनदेखी, जीएसटी, नोटबंदी, SC/ST कानून में सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सुधार न करना। वहीं कांग्रेस का लोक लुभावन घोषणा पत्र मसलन किसान माफी और विपक्ष का समर्थन हार के कारक हो सकते हैं।

आपको बता दें कि किसानों का (न्यूनतम समर्थन मूल्य) एमएसपी और एससी/एसटी कानून के विरोध में आंदोलन करके जनता सरकार से नाराजगी का संकेत दे चुकी थी। जैसे ही हिन्दी पट्टी के राज्यों में चुनाव हुआ मसलन राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ तो जनता ने उक्त मुद्दों का प्रतिशोध नोटा का प्रयोग और दूसरे दलों को मत देकर जाहिर कर दिया, और तीनों राज्यों में भाजपा की सत्ता धड़ाम हो गई..।

राममंदिर मुद्दा बीजेपी की जीत और हार का मुख्य कारक होता है। लेकिन अब मंदिर मुद्दा पर सरकार की मंशा को लकर सवाल  खड़े होने लगे हैं शायद हार यह भी एक कारम हो सकता है। हाल ही में कुंभ मेंला में संतों ने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा था कि मंदिर नहीं बनेगा तो बीजेपी की सरकार भी नहीं बनेगी।

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साल 2014 से मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी लेकिन अब इसमें कहीं न कहीं बट्टा जरूर लगा है। इसका अंदाजा इसबात से लगाया सकता है कि मोदी की रैलियों में जनता का अपेक्षा कृत कम हो जाना है। तथाकथित राष्ट्रवाद और कट्टर हिन्दूवादी छवी वालें भाजपाई अब अपनी विचार धारा को भी लचीला करते देखे जा रहे हैं। लेकिन इसके विपरीत विपक्ष अभी एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को हल्के में नही ले रहा और इसका मजबूती से सामना कर सके इसके लिए गठजोड़ को कशमाकश की जा रही है।

हलांकि यूपीए के नेतृत्व में महागठबंधन की राजनीति तो विखर गई है। जिसके मुख्य कारक अखिलेश यादव और मायावती बनें हैं। बता दें कि मध्यप्रदेश चुनाव के दौरन ही इसके संकेत मिल गए थे कि उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा गठबंधन में कांग्रेस को जगह नहीं मिलने वाली है। अब सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने साफ कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में विचारों और लोगों का संगम हैं।

चंद्रबाबू नायडू का मोदी सरकार को झटका,तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश

एनडीए के पुराने साथी टीडीपी (तेलगू देशम पार्टी) के अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार को झटका देते हुए एनडीए नाता तोड़ लिया है। चंद्रबाबू काफी समय से आंध्र प्रदेश के लिए मोदी सरकार से विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे थे। ये मांग पूरी नहीं होने पर 16 सांसदों को लेकर नायडू एनडीए बाहर हो गए।

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देश में तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश में जुटे हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने तासरे मोर्चे की तारीफ की थी और कांग्रेस से नाराजगी जाहिर की थी। दरअसल मध्य प्रदेश में सपा के अकेले विधायक को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने से अखिलेश का रूख कांग्रेस के विरोध में हैं।

सपा,बसपा गठबंधन की राजनीति-

उत्तर प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री, अखिलेश यादव और मायावती अपने बुआ- बबुआ के रिश्ते के लिए काफी सुर्खियों में रहते हैं। गौरतलब है कि 14 मार्च 2018 ऐसा दिन था जब दो सियासी दुश्मन कहे जाने वाले और उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेता एक साथ आये। शायद इसके पहले इस तरह के किसी ने कयास भी नहीं लगाए होंगे।लेकिन ऐसा हुआ और बीएसपी सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव एक साथ आये।

 

माया आखिलेश चद्रबाबू नाएडू अलविदा 2018: राजनीतिक परिवर्तन,राजनेता और सरकार
सपा,बसपा गठबंधन की राजनीति में चंद्रबाबू नायडू को मिला अखिलेश का समर्थन

 

मालूम हो कि ये उस वक्त हुआ जब गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव होना था। ऐसे में बीजेपी को मात देने के लिए अखिलेश यादव मायावती से मिलने के लिए उनके घर गए और इस चुना में बीजेपी ने समर्थन भी दिया। जिसका परिणाम हुआ कि भाजपा के उपमुख्यमंत्री का गृह कहे जाने वाले फूलपुर में और मुख्यमंत्री के गृह गोरखपुर में भाजपा को करारी हार झेलनी पड़ी। इतना ही नहीं ये गठबंधन आगामी 2019 लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा। इसके संकेत अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती से मिल चुके है।

राजनीतिक चपेट में फंसे आरजेडी प्रमुख लालू यादव

साल 2018 की राजनीतिक चपेट में लालू यादव और उनका परिवार बुरी तरह फंसा है। लालू प्रसाद यादव को 2018 में सजा हुई और जेल गए। मालूम हो कि चारा घोटाले के चौथे मामले में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को सीबीआई की विशेष कोर्ट ने 14 साल की सजा सुनाई है।

कोर्ट ने 60 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। जेल में लालू यादव अपनी सेहत को लेकर भी परेशान है, उनकी सेहत आये दिन बिगड़ती ही रहती है। आपको बता दें कि बिहार में लालू को चारा घोटाला में सजा होने के बाद नीतीश कुमार ने आरजेडी से गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी। नीतीश ने कहा कि चारा घोटाला गठबंधन की सरकार नहीं रहनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि वह भ्रष्टाचार पर जीरों टॉलरेंस की राजनीति करेंगे।

सीएम  केजरीवाल के माफीनामे..

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए 2018 काफी निराशा वाला रहा है। जिसमें उन्होंने कानूनी तौर पर माफी मांगीं हैं। याद हो कि केजरीवाल ने वित्त मंत्री अरुण जेटली, नितिन गडकरी और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल से माफी मांगी थी। इसके अलावा शिरोमणि अकाली दल के महासचिव बिक्रम सिंह मजीठिया से भी उन्होंने माफी मांगी। वैसे तो कभी केजरीवाल कहा करते थे कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ेंगे। केजरीवाल उक्त नेताओं पर आरोप लगाते हुए नहीं थकते थे।

विशेष राज्य ,जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक उलटफेर

भाजपा ( भारतीय जनता पार्टी) ने पहली बार पीडीपी के साथ मिलकर कश्मीर में सरकार बनाई थी। इस गठबंधन को उत्तर और दक्षिण का मिलन कहा गया था। काफी दिक्कतों में यह सरकार 2 साल तक चली, लेकिन अंत में बीजेपी ने पीड़ीपी को झटका देते हुए गठबंधन तोड़कर महबूबा सरकार गिरा दी। बाद में राज्यपाल शासन लगू हो गया और अब राष्ट्रपति शासन लागू है।

 

महबूबा मुफ्ती.. अलविदा 2018: राजनीतिक परिवर्तन,राजनेता और सरकार
विशेष राज्य जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक उलटफेर..

जम्मू-कश्मीर में महबूबा सरकार गिरने के बाद राज्यपाल शासन लगू हो गया और अब राष्ट्रपति शासन लागू है।

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न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार लाया गया CJI के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव

अप्रैल में कांग्रेस समेत कुछ और विपक्षी दलों के कुल 64 सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव दिया था। इन पार्टियों ने राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया था। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस दिया था।

कर्नाटक विधानसभा में जीत कर भी हार गई थी बीजेपी

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 104 विधायकों ने जीत प्राप्त की थी और सदन में बहुमत साबित करने के लिए 112 के जादुई आंकड़े का समर्थन जुटाने में असफल हो गई थी। येदियुरप्‍पा सरकार को विश्‍वास मत हासिल करने के पहले ही इस्‍तीफा देना पड़ा। उनके इस्‍तीफे के साथ ही राज्‍य में जेडी-एस और कांग्रेस की गठबंधन सरकार बन गई। कांग्रेस 78 सीटें जीतकर भी सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की। कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन देकर सरकार कुमार स्वामी को मुख्यमंत्री बना दिया।

मोदी सरकार के खिलाफ आविश्वास प्रस्ताव एक अग्निपरीक्षा

मोदी सरकार को अपने कार्यकाल में पहली बार कड़ी परीक्षा  से गुजरना पड़ा। सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। मोदी सरकार को वोटिंग में 325 वोट मिले, विपक्ष में 126 वोट अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में पड़े।

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मालूम हो कि टीडीपी सांसद की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने मंजूर किया था। जिसके बाद चर्चा के लिए दिन तय हुआ था। विपक्ष के लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 11 घंटों की लंबी बहस चली। अविश्वास प्रस्ताव पर कुल 451 वोट पड़े। इस वोटिंग में विपक्ष के 126 वोट मिले और सरकार को 325 वोट प्राप्त हुए।

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  महेश कुमार यादव

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