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अयोध्याः पत्रकार शीतला सिंह का खुलासा, तत्कालीन संघ प्रमुख ने रोका था राममंदिर निर्माण

राममंदिर निर्माण अयोध्याः पत्रकार शीतला सिंह का खुलासा, तत्कालीन संघ प्रमुख ने रोका था राममंदिर निर्माण

अयोध्याः रामजन्मभूमि विवाद का वो कालखंड जिस दिन दहल उठा था अयोध्या। घटना इतनी भयावह थी कि पूरे देश में संप्रादायिक सौहार्द कराह उठा था। भाई चारा व्याकुल हो गया था। देश में राज्य और की सत्ता में जो उथल-पुथल हुई थी उसका अहसास 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में “बाबरी मस्जिद विध्वंस” के घटना क्रम से ही लगाया जा सकता है। 6 दिसंबर, 1992 के मूल में यह 22-23 दिसंबर, 1949 क षड्यंत्र का ही प्रतिफल था।

 

राममंदिर निर्माण अयोध्याः पत्रकार शीतला सिंह का खुलासा, तत्कालीन संघ प्रमुख ने रोका था राममंदिर निर्माण
अयोध्याः पत्रकार शीतला सिंह का खुलासा, तत्कालीन संघ प्रमुख ने राममंदिर निर्माण रोका

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मालूम हो कि 6 दिसंबर, 1992 को विश्व हिन्दू परषद द्वारा जुटाई गई उन्मादी भीड़ द्वारा अयोध्या स्थित ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद के विध्वंस ने अमन- शांति व सद्भाव के पक्षधर आम लोगों से लेकर उनके संघर्ष साथी लेखकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों पूरी तरह विचलित करके रख दिया था। कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि अब देश का जब भी इतिहास लिखा जाएगा तो 6 दिसंबर के पहले और बाद के खंडों में बांटा विभाजित किया जाएगा।

बता दें कि अनेक बुद्धजीवियों ने अपने दस्तावेजों के जरिए 22-23 दिसंबर, 1949 की रात को एक षडयंत्र कहा और इसकी पोल खोली। गौरतलब है कि 22-23 दिसंबर,1949 की रात रामलला की मूर्ति को बाबरी मस्जिद में ‘प्रतिष्ठित’ कर उसे उनका ‘प्राकट्योत्सव’ बताने की पोल खोलतीं और बताती हैं कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में जो घटना घटी, उसके मूल में यह 22-23 दिसंबर, 1949 के षड्यंत्र का प्रतिफल था।

देश के नागरिकों पर थोपी गई इस त्रासदी को लेकर (जोकि लाजमी था) वर्तमान समय तक कई लेखकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की पुस्तकों व पत्रिकाओं में कई विचार और विश्लेषण सामने आए हैं। ऐसी ही पुस्तकों के योगदान से ही आज एक बात का खुलासा हुआ है, जिसका शायद आपको अंदाजा भी नही होगा। गौरतलब है कि ये खुलासा उन लाखों-करोड़ो राम भक्तों की आस्था को तार-तार करने वाला है।

संघ (RSS) के तत्कालीन प्रमुख देवरस ने मंदिर निर्माण को रोका

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अयोध्या के हिन्दी दैनिक ‘जनमोर्चा’ के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह ने अपनी किताब ”अयोध्या राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद का सच” में खुलासा कपरते हुए लिखा कि संघ (RSS) के तत्कालीन प्रमुख देवरस ने मंदिर निर्माण को रोका। तत्कालीन महामंत्री अशोक सिंघल को फटकार भी लगाई थी। देवरस ने कहा था कि मामला राजनीतिक है। राजनीतिक फायदे के लिए राममंदिर बनवाना आवश्यक नहीं है। उन्होंने कहा था कि देश में हिंदुत्व की सरकार लाना है।

जबकि 4 मुस्लिम विद्वानों ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने की वकालत की थी। चारों मुस्लिम विद्वानों ने कहा था यह आंदोलन मुसलमानों को मुख्यधारा से बाहर करेगा। राम मंदिर के लिए ट्रस्ट भी बना था। महंत नृत्य गोपालदास ट्रस्ट के अध्यक्ष और कई साधु सन्यासी थे ट्रस्टी थे। मंदिर बनवाने के लिए महंत अवैदनाथ ने विश्व हिंदू परिषद के 13 नेताओं के साथ दिगंबर अखाड़ा में की थी बैठक। इस बैठक में शीतला सिंह को भी बुलाए गया था। तत्कालीन आरएसएस के प्रमुख देवरस ने कहा था कि अयोध्या में 800 मंदिर है एक मंदिर और बन जायेगा तो 801 हो जाएगा। मंदिर बनने के बाद किसने बनवाया मंदिर यह कोई नहीं पूछेगा। देवरस ने कहा अशोक सिंघल से कहा ता कि तुमने मेरे पीठ पर छुरा मारा है।

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अंग्रेजी शासन में सुनियोजित तरीके से बनाए गए विवाद को 6 दिसंबर 1992 में दोहराने के 22-23 दिसंबर के षडयंत्र में हिंदू सांप्रदायिक तत्वों की नुमाइंदगी में तत्कालीन सत्ता पूरी तरह सराबोर है। आपको बता दें कि राजनीतिक शक्तियों की चतुराई ने अपने वर्चस्व रक्षा की राजनीति के लिए हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के उद्वेलनों, कुंठाओं व ग्रंथियों का प्रयोग किया। जिससे सारे इल्जाम इन धर्मों पर थोपे जाते रहे। इसके फायदे राजनीतिबाजों के पास जाते रहे। जो अपनी हुकूमत चलाने के आदी थे। इसी उद्देश्य को पोषने के लिए अब तक राममंदिर नहीं बनने दिया और रामभक्त होने का जमकर ढ़िढ़ोरा पीटा।

गौरतलब है कि अयोध्या के हिन्दी दैनिक ‘जनमोर्चा’ के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह की हाल में प्रकाशित ‘अयोध्या रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद का सच’ शीर्षक पुस्तक, जो अपने पाठकों को इस तथ्य से समग्रता से रूबरू कराती है कि अयोध्या विवाद में सारी की सारी पेचीदगियां राजनीति द्वारा अपनी स्वार्थ साधना के लिए उसके बेजा प्रयोग से पैदा हुई है,एक बड़े अभाव की पूर्ति करती है।

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उक्त पुस्तक इस कड़वे सच को सामने लाने में भी कुछ उठा नहीं रखती कि यह विवाद सिर्फ एक कारण से हनुमान की पूंछ या सुरसा के मुंह की तरह फैलता और सुलझने के बजाय उलझता गया है कि एक ओर इसे दो धर्मों के बीच की समस्या मानकर समाधान के प्रयास किए जाते रहे और दूसरी ओर राजनीति अपने सदैव नजर न आने वाले हाथों से उन प्रयासों की राह में रोड़े लगाते रहे।

शीतला सिंह पुस्तक में लिखते हैं कि जब एक दल अपने को धर्मनिरपेक्ष, परंपरावाद से भिन्न और वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करने वाला बताए और सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का निर्वाहक घोषित करे और दूसरा हिंदुत्व को अपना दिशावाहक-निदेशक मानकर पुनरुत्थानवाद को समर्पित और समय के चक्र को पीछे की ओर ले जाने के लिए प्रयत्नशील हो, किंतु विवाद में दोनों ही मिलकर एक दूसरे के पूरक की भूमिका निभायें, तो कौन अपने आदर्शों के प्रति समर्पित है, इसे समझना बड़ा मुश्किल हो जाता है।’

हलाकि यहां पर भले ही उन्होंने नाम नहीं लिए हैं लेकिन समझा जा सकता है कि वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की ओर ही इशारा कर रहे हैं। आगे उनकी पुस्तक स्वतंत्रता के बाद कैसे कांग्रेस इस विवाद में न सिर्फ 1990-92 की भाजपा बल्कि उसके पूर्वावतार जनसंघ और उससे भी पहले हिंदू महासभा तक से ‘हिंदू कार्ड’ की खीचा तानी करती रही।

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महेश कुमार यादुवंशी

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