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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति के मुख्य केंद्रों के बारे में जानें

ईश्वर पांडे और मंगल पांडे को दी गई थी फांसी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति के मुख्य केंद्रों के बारे में जानें

1857 की क्रांति के स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य केंद्र कानपुर ,लखनऊ,बरेली, झांसी,जगदीसपुर (बिहार) ,अलीगढ़, इलाहाबाद ,फैजाबाद प्रमुख केंद्र थे।उल्लेखनीय है कि देश की आजादी में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से नारी शक्ति की अहम भूमिका रही है। ऐसा ही एक उदाहरण है 1857 की क्रांति के बीज एक महिला की चेतना से ही बोए गए।मंगल पांडे को क्रांति के जन्मदाता के रूप में देखा जाता है।

 

ईश्वर पांडे और मंगल पांडे को दी गई थी फांसी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति के मुख्य केंद्रों के बारे में जानें

क्रांति की चेतना के कारण पर गौर किया जाए तो वह है धर्म  जिसकी बजह से हिंदू ,मुस्लिमों में एकजुटता आई

आपको बता दें कि जहां एक तरफ मंगल पांडे को क्रांति के जन्मदाता के रूप में देखा जाता है।वहीं उस भारतीय महिला को भी मंगल पांडे के अंदर चेतना जगाने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चेतना की जन्मदात्री माना जाता है। अपको बता दें कि अगर क्रांति के इस माहान नायक के अंदर क्रांति की चेतना के कारण पर गौर किया जाए तो वह है धर्म  जिसकी बजह से हिंदू ,मुस्लिमों में एकजुटता आई।इस पर कुछ इतिहासकारों ने इस घटना के बारे में लिखा है कि यह एक सैनिक विद्रोह था।तो वहीं कुछ का मानना है कि ईसाईयों के खिलाफ हिंदू,मुस्लिम का संड्यंत्र था।ऐसे ही इस क्रांति के बारे में कई मत हैं। जिनका नीचे उल्लेखित किया गया है।

क्रांति के संदर्भ में इतिहासकारों का दृष्टिकोण-

सर जॉन लारेन्स एंव सीले – 1857 का विद्रोह सिपाही विद्रोह मात्र था।

आर सी मजूमदार– यह ना तो प्रथम था ना ही राष्ट्रीय और यह स्वतंरता के लिए संग्राम नही था।

बीर सावरकर– यह विद्रोह राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए सुनियोजित युद्द था।

जेम्स आउट्म एवं डब्ल्यू टेलर-यह अंग्रेजों के विरुद्ध हिन्दू एवं मुसलमानों का षडयंत्र था।

विपिनचंद्र-1857 का विद्रोह विदेशी शासन से देश को मुक्त कराने का देशभक्तिपूर्ण प्रयास था।

क्रांति का दमन करने में अंगेजों को दो महीने में ही सफलता मिल गई थी

आपको बता दें कि 1857 की क्रांति भारत की स्वतंत्रता में नींव का पत्थर है।हालांकि क्रांति का दमन करने में अंगेजों को दो महीने में ही सफलता मिल गई थी।लेकिन इस आंदोलन के दूरगामी प्रभाव से ही 90 साल बाद देश को आजादी मिली।सैनिकों को दिए जाने वाले कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी के प्रयोग होने की खबर ने  हिंदू,मुस्लिम की भावना को झकझोर कर रख दिया था। क्योंकि कारतूस का प्रयोग करने के लिए दांतों से उसकी बारूद निकालनी होती थी। जोकि दोनो धर्मो की धर्मिक भावनाओं के विरुद्ध था।इसके अलावा अंग्रजी सेना में भारतीय सेनिकों को हेय दृष्टि से देखा जाता था।

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भारतीय सैनिकों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए कई तरह से दबाव बनाते थे

फौज में अंग्रेज अधिकारी भारतीय सैनिकों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए कई तरह से दबाव बनाते थे।बाइबिल की हिंदी और भारत की स्थानीय भाषाओं में छपवाकर सैनिकों को देते थे।जिससे सैनिकों को लगने लगा कि वह भारत में प्रचलित धर्मों को भ्रष्ट कर रहे है।उक्त कारकों से प्रेरित होकर लगभग सभी भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों को सबक सिखाने की ठान ली थी।आपको बता दें कि 1853 में अंग्रेजी फौज को ‘एनफील्ड पी 53’ बंदूकें दी  गई थी जिसके कारतूस में पानी की सीलन से बचाने के लिए गाय और सुअर की चर्बी का प्रयोग होता था।

10 मई को मेरठ छावनी की पैदल सैन्य टुकड़ी ने भी गाय की चर्बी वाले कारतूसों का बहिष्यकार कर दिया

जब मगल पांडे को इस बात का पता लगा तो उन्होंने चर्बी वाले कारतूसों का बहिष्यकार किया।और अपने ऑफीसर का आदेश मानने से मना कर दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने अंग्रेज अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।बाद में पांडे के अलावा दूसरे भारतीय सैनिक भी विद्रोह में शामिल हो गए।जिसके बाद अंग्रेजी सरकार ने 8 अप्रैल को मंगल पांडे और ईश्वर को फांसी दे उग्र हो गया।10 मई को मेरठ छावनी की पैदल सैन्य टुकड़ी ने भी गाय की चर्बी वाले कारतूसों का बहिष्यकार कर दिया ।अंग्रेजी शासन के खिलाफ बगावत का शं12 मई 1857 को क्रातिकारियों ने दिल्ली में अधिकर कर लिया और बहादुर शाहजफर द्वतीय को अपना सम्राट घोषित कर दिया। कड़ी मशक्कत के बाद अंग्रेज दिल्ली पर दुबारा शासन करने में 20 सितम्बर 1857 को कामयब हो गए।खनाद कर दिया।

महेश कुमार यदुवंशी 

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