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अंग्रेज प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को दबानें में क्यों रहे कामयाब, जानें उन कारणों को

क्रांति को दबाने में संसाधनों की कमी था मुख्य कारण अंग्रेज प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को दबानें में क्यों रहे कामयाब, जानें उन कारणों को

बैरकपुर छावनी के कुछ सैनिकों द्वारा की गई प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने एक आक्रामक रूप धारण कर लिया था। मालूम हो कि 1857 का संग्राम एक साल से ज्यादा समय तक चला था। इसे 1858 के मध्य में दबा दिया गया था। मालूम हो कि मेरठ में विद्रोह भड़कने के चौदह महीने बाद 8 जुलाई, 1858 को आखिरकार कैनिंग ने घोषणा किया कि विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया गया है।

 

अंग्रेज प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को दबानें में क्यों रहे कामयाब, जानें उन कारणों को
अंग्रेज प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को दबानें में क्यों रहे कामयाब, जानें उन कारणों को

 

विद्रोह की असफलता के कारण-

आपको बता दें कि बहुत कम समय में आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों तक पहुंच चुका था।लेकिन देश के एक बड़े हिस्से पर इसका कोई असर तक नहीं पड़ा। अगर देखा जाए तो खासतौर पर दोआब क्षेत्र में इसका असर रहा। दक्षिण के प्रांतों ने इसमें कोई हिस्सा नहीं लिया। अहम शासकों जैसे सिंधिया, होल्कर, जोधपुर के राणा और अन्यों ने विद्रोह का समर्थन नहीं किया था।

1857 की क्रांति के मुख्य चेहरों के बारे में जानें क्या थी क्रांति में भूमिका

कुशल नेतृत्व का आभाव-

आपको बता दें कि विद्रोह के लिए नेतृत्व का अभाव था। नाना साहेब, तांत्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई की बहादुरी में कोई शक नहीं है लेकिन वे आंदोलन को असरदार नेतृत्व नहीं दे सके। इसके अलावा विद्रोहियों में अनुभव, संगठन क्षमता व मिलकर कार्य करने की शक्ति की कमी थी।विद्रोही क्रांतिकारियों के पास ठोस लक्ष्य एवं स्पष्ट योजना का अभाव था। उन्हें अगले क्षण क्या करना होगा और क्या नहीं, यह भी निश्चित नहीं था।मात्र भावावेश एवं परिस्थितिवश आगे बढ़े जा रहे थे। सैनिक दुर्बलता का विद्रोह की असफलता में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। बहादुरशाह जफर और नाना साहब एक कुशल संगठनकर्ता अवश्य थे, पर उनमें सैन्य नेतृत्व की क्षमता की कमी थी, जबकि अंग्रेजी सेना के पास लॉरेन्स ब्रदर्स, निकोलसन, हेवलॉक, आउट्रम एवं एडवर्ड जैसे कुशल सेनानायक थे।

हथियारों का आभाव

विद्रोहियों के पास न संख्याबल था और न पैसा। उसकेविपरीत  ब्रिटिश सेना के पास बड़ी संख्या में सैनिक, पैसा और हथियार थे जिसके बल पर वे विद्रोह को दबाने  में सफल रहे।

1857 की क्रांति के मुख्य चेहरों के बारे में जानें क्या थी क्रांति में भूमिका

समाज के मध्य वर्ग का क्रांति में भाग न लेना

1857 ई. के इस विद्रोह के प्रति ‘शिक्षित वर्ग’ पूर्ण रूप से उदासीन रहा। व्यापारियों एवं शिक्षित वर्ग ने कलकत्ता एवं बंबई में सभाएं कर अंग्रेजों की सफलता के लिए प्रार्थना भी की थी। अगर इस वर्ग ने अपने लेखों एवं भाषणों द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया होता, तो निःसंदेह ही क्रांति के इस विद्रोह का परिणाम कुछ ओर ही होता।

विद्रोह का अंजाम

विद्रोह के समाप्त होने के बाद 1858 ई. में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पारित कर ईस्ट इंडिया कंपनी के अस्तित्व को समाप्त कर दिया, और अब भारत पर शासन का पूरा अधिकार महारानी विक्टोरिया के हाथों में आ गया। इंग्लैंड में 1858 ई. के अधिनियम के तहत एक ‘भारतीय राज्य सचिव’ की व्यवस्था की गयी, जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक ‘मंत्रणा परिषद्’ बनाई गई। इन 15 सदस्यों में 8 की नियुक्ति सरकार द्वारा करने तथा 7 की ‘कोर्ट ऑफ हाइरेक्टर्स’ द्वारा चुनने की व्यवस्था की गई।

अंग्रजों की हड़प नीति की समाप्ति भी अहम कारण

ब्रिटिश सरकार की हड़प नीति को समाप्त कर दिया गया। कानूनी वारिस के तौर पर पुत्र गोद लेने के अधिकार को स्वीकार किया गया। 1857 का विद्रोह इसलिए भी अहम था क्योंकि भारत की आजादी की लड़ाई के लिए इसकी वजह से मार्ग प्रशस्त हुआ।1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनीतिक कारण ब्रिटिश सरकार की ‘गोद निषेध प्रथा’ या ‘हड़प नीति’ थी। यह अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति थी जो ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के दिमाग की उपज थी। कंपनी के गवर्नर जनरलों ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने के उद्देश्य से कई नियम बनाए।

किसी राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था

उदाहरण के लिए, किसी राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था। राज्य हड़प नीति के कारण भारतीय राजाओं में बहुत असंतोष पैदा हुआ था। रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को झांसी की गद्दी पर नहीं बैठने दिया गया। हड़प नीति के तहत ब्रिटिश शासन ने सतारा, नागपुर और झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया।इसके बाद अन्य राजाओं को भय सताने लगा कि उनका भी विलय थोड़े दिनों की बात रह गई है। इसके अलावा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब की पेंशन रोक दी गई जिससे भारत के शासक वर्ग में विद्रोह की भावना मजबूत होने लगी।

बहादुर शाह द्वितीय के वंशजों को लाल किले में रहने पर पाबंदी लगा दी थी 

आपको बता दें कि विद्रोह की आग विक्रराल तब हुई जब बहादुर शाह द्वितीय के वंशजों को लाल किले में रहने पर पाबंदी लगा दी गई। कुशासन के नाम पर लार्ड डलहौजी ने अवध का विलय करा लिय था। जिससे बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, अधिकारी एवं सैनिक बेरोजगार हुए थे। घटना के बाद जो अवध ब्रिटिश शासन का विरोधी बन गया था।इससे पहले वह अग्रेजी शासन का वफादार था।

महेश कुमार यदुवंशी 

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