Uncategorized

देश की आजादी के दीवाने को अंग्रेजों ने बेटे का सर कलम करके थाली में परोसा था

अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में जब हिंदुस्तान की आजादी की चिंगारी भड़की तो सभी विद्रोही सैनिकों और राजा-महाराजाओं ने बहादुर शाहजफर को  हिंदुस्तान का सम्राट माना। और उनके नेतृत्व में अंग्रेजों की को परास्त कर दिया। अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय सैनिकों की बगावत को देख बहादुर शाह जफर का भी गुस्सा फूट पड़ा था।  और उन्होंने अंग्रेजों को हिंदुस्तान से भगाने का आह्वान कर डाला। भारतीयों ने दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में अंग्रेजों को हताशा का सामना करना पड़ा। शाहजफर ने क्रांति में  सेनापति की भूमिका निभाई थी ।

 

उत्पल कुमार सिंह ने सचिवालय में स्वतंत्रता दिवस की तैयरियों के संबंध में बैठक ली

मालूम हो कि शुरुआती परिणाम हिंदुस्तानी योद्धाओं के पक्ष में रहे।लेकिन बाद में अंग्रेजों के छल-कपट के चलते प्रथम स्वाधीनता संग्राम का रुख बदल गया। और अंग्रेज बगावत को दबाने में कामयाब हो गए। बहादुर शाह जफर ने हुमायूं के मकबरे में शरण ली।लेकिन मेजर हडस ने उन्हें उनके बेटे मिर्जा मुगल और खिजर सुल्तान व पोते अबू बकर के साथ पकड़ लिया।

ब बहादुर शाह जफर को भूख लगी तो अंग्रेज उनके सामने थाली में परोसकर उनके बेटों के सिर ले आए

अंग्रेजों ने जुल्म की सभी हदें पार कर दीं। जब बहादुर शाह जफर को भूख लगी तो अंग्रेज उनके सामने थाली में परोसकर उनके बेटों के सिर ले आए। उन्होंने अंग्रेजों को जवाब दिया कि हिंदुस्तान के बेटे देश के लिए सिर कुर्बान कर अपने बाप के पास इसी अंदाज में आया करते हैं। आजादी के लिए हुई बगावत को पूरी तरह खत्म करने के मकसद से अंग्रेजों ने अंतिम मुगल बादशाह को देश से निर्वासित कर रंगून भेज दिया।

बहादुर शाह जफर के शासनकाल के दौरान, उर्दू शायरी विकसित हुयी और अपने चरम पर पहुच गयी। अपने दादा और पिता जो कवि भी थे।  प्रभावित होकर उन्होंने भी खुद में यह रचनात्मक कौशल विकसित किया। उन्होंने साहित्यिक क्षेत्र में भी योगदान दिया। उनकी कविता ज्यादातर प्रेम और रहस्यवाद के दांय-बांय रहती थी। उन्होंने ब्रिटिश द्वारा दिए उस दर्द और दुख के बारे में भी लिखा जिसका उन्होंने सामना किया था।

जैक मोमिन और दाग जैसे अपने समय के प्रतिष्ठित और मशहूर उर्दू कवियों के एक महान कद्रदान थे

वे मिर्जा गालिब, जैक मोमिन और दाग जैसे अपने समय के प्रतिष्ठित और मशहूर उर्दू कवियों के एक महान कद्रदान थे। उनकी अधिकांश उर्दू गजलें 1857 के युद्ध के दौरान खो गयी थीं। उनमें से जो बची थी, उन्हें संकलित किया और कुल्लियात-ऐ-जफर नाम दिया गया।बहादुर शाह जफर जैसे कम ही शासक होते हैं जो अपने देश को  प्रमिका की तरह मोहब्बत करते हैं।  और कू-ए-यार (प्यार की गली) में जगह न मिल पाने की कसक के साथ विदेश  में दम तोड़ देते हैं। जो हिंदुस्तानी विचारधारा के साथ जो अपने देश को अपनी मां मानते है।

शायद उनके लबों पर अपनी ही मशहूर गजल का यह शेर जरूर रहा होगा

बादशाह जफर ने जब रंगून में कारावास के दौरान अपनी आखिरी सांस ली। शायद उनके लबों पर अपनी ही मशहूर गजल का यह शेर जरूर रहा होगा- “कितना है बदनसीब जफर दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में।”भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर उर्दू के एक बड़े शायर के रूप में भी विख्यात हैं। उनकी शायरी भावुक कवि की बजाय देशभक्ति के जोश से भरी रहती थी और यही कारण था। कि उन्होंने अंग्रेज शासकों को तख्ते-लंदन तक हिन्दुस्तान की शमशीर  चलने की चेतावनी दी थी।

हिंदियों में बू रहेगी जब तलक इमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग  हिन्दुस्तान की

माना जाता है कि  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद जब बादशाह जफर को गिरफ्तार किया गया ,तो उर्दू जानने वाले एक अंग्रेज सैन्य अधिकारी ने उन पर कटाक्ष करते हुए यह शेर कहा-“दम में दम नहीं, अब खैर मांगो जान की ए जफर अब म्यान हो चुकी है, तलवार हिन्दुस्तान की। इस पर जफर ने करारा जवाब देते हुए कहा था- “हिंदियों में बू रहेगी जब तलक इमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग  हिन्दुस्तान की।

अंतिम बादशाह कहे जाने वाले जफर को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दिल्ली का बादशाह बनाया गया था

भारत में मुगलकाल के अंतिम बादशाह कहे जाने वाले जफर को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दिल्ली का बादशाह बनाया गया था। बादशाह बनते ही उन्होंने जो चंद आदेश दिए, उनमें से एक था गोहत्या पर रोक लगाना। इस आदेश से पता चलता है कि वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के कितने बड़े पक्षधर थे।गोरखपुर विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व प्राध्यापक डॉ. शैलनाथ चतुर्वेदी के मुताबिक 1857 के समय बहादुर शाह जफर एक ऐसी बड़ी हस्ती थे, जिनका बादशाह के तौर पर ही नहीं एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के रूप में भी सभी सम्मान करते थे। इसीलिए बेहद स्वाभाविक था कि मेरठ से विद्रोह कर जो सैनिक दिल्ली पहुंचे उन्होंने सबसे पहले बहादुर शाह जफर को अपना बादशाह बनाया।

जफर को बादशाह बनाना सांकेतिक रूप से ब्रिटिश शासकों को एक संदेश था

आपको बता दें कि इतिहासकार बताते हैं कि जफर को बादशाह बनाना सांकेतिक रूप से ब्रिटिश शासकों को एक संदेश था। इसके तहत भारतीय सैनिक यह संदेश देना चाहते थे कि भारत के केन्द्र दिल्ली में विदेशी नहीं बल्कि भारतीय शासक की सत्ता चलेगी। बादशाह बनने के बाद बहादुर शाह जफर ने गोहत्या पर पाबंदी का जो आदेश दिया था वह कोई नया आदेश नहीं था। बल्कि अकबर ने अपने शासनकाल में इसी तरह का आदेश दे रखा था। जफर ने महज इस आदेश का पालन फिर से करवाना शुरू कर दिया था।

केवल गालिब, दाग, मोमिन और जौक जैसे उर्दू के बड़े शायरों को तमाम तरह से प्रोत्साहन दिया

देशप्रेम के साथ-साथ जफर के व्यक्तित्व का एक अन्य पहलू शायरी थी। उन्होंने न केवल गालिब, दाग, मोमिन और जौक जैसे उर्दू के बड़े शायरों को तमाम तरह से प्रोत्साहन दिया। बल्कि वह स्वयं एक अच्छे शायर थे। साहित्यिक समीक्षकों के अनुसार जफर के समय में जहां मुगलकालीन सत्ता कमजोर हो रही थी। वहीं उर्दू साहित्य खासकर उर्दू शायरी अपनी चरम  पर थी। जफर की मौत के बाद उनकी शायरी “कुल्लियात ए जफर” के नाम से संकलित हुई थी।

महेश कुमार यदुवंशी 

Related posts

चुनावों के लिए भाजपा की खास रणनीति, प्रधानमंत्री करेंगे पूरे देश में सभा

bharatkhabar

टाटा संस की कार्रवाई से ठेस पहुंची: साइरस

bharatkhabar

बिहार में मुख्यमंत्री के घर कोरोना की दस्तक

Kumkum Thakur