आपने शिक्षा का अधिकार, समानता का अधिकार इत्यादि के बारे में तो सुना होगा, लेकिन इन दिनों चर्चा में है बैठने का अधिकार। वैसे तो आप नाम से समझ गए होंगे कि इसमें किसी को बैठने का अधिकार दिए जाने की बात कही जा रही है। आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर ये कैसा अधिकार हुआ और आखिर इस अधिकार का किस तरह से फायदा होने वाला है और किसे इसका सबसे ज्यादा फायदा होगा। दरअसल, अभी तमिलनाडु सरकार ने एक विधेयक पेश किया है, जिसमें “बैठने का अधिकार” देने की बात कही गई है और इस पर कानून बनाने की पहल भी की गई है। ऐसे में जानते हैं आखिर ये अधिकार क्या है और किस वर्ग को ध्यान में रखते हुए सरकार की तरफ से यह पहल की गई है। आइए जानते हैं कि इससे पहले किसी और राज्य में इस तरह की पहल की गई है या नहीं, जानिए इस अधिकार से जुड़ी हर एक बात :-
क्या है ये अधिकार?
यह विशेष तरह का अधिकार दुकानों और प्रतिष्ठानों में सामान की बिक्री करने वाले कर्मचारियों के लिए है। जैसे आपने देखा होगा कि बहुत सारे दुकानों में काम करने वाले कर्मचारी हमेशा खड़े ही रहते हैं और लगातार काम करते रहते हैं। ऐसे में सरकार का ये कानून है कि जब भी कर्मचारी फ्री हो, उन्हें खड़ा ना रहना पड़े और उनके लिए बैठने की व्यवस्था हो ताकि वो बैठ सके। यानी दुकानों और प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों को बैठने का अधिकार दिया जाएगा। मालूम हो कि ये विधेयक तमिलनाडु शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 1947 में संशोधन की सिफारिश करता है और इसमें एक सब-सेक्शन जोड़ा जाएगा। इन अधिकार के नियमों के अनुसार, हर दुकान और व्यवसायिक प्रतिष्ठान पर कर्मचारियों के बैठने के लिए उचित प्रबंध करने होंगे, ताकि काम के दौरान पूरे वक्त उन्हें खड़ा नहीं रहना पड़े और काम के वक्त उन्हें बैठने के मौके मिल सकें।
क्या होगा फायदा?
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (CITU) की तमिलनाडु समिति के अध्यक्ष सौंदर्य राजन ने बताया कि इससे ग्राहकों के नहीं आने पर भी लगातार खड़े रहने से बचने के साथ-साथ कामगारों की सेहत में भी सुधार होगा, यानी यह कर्मचारियों की सेहत को ध्यान में रखते हुए पहल की गई है। दरअसल, बैठने की व्यवस्था नहीं होने पर महिलाएं गर्भाशय की समस्या का सामना करती हैं और कई पुरुष ‘वेरिकोस वेन’ से ग्रस्त हो जाते हैं।
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व्यापारी खुश नहीं हैं
हालांकि, सरकार के इस कदम से उद्योग संघ और कार्यकर्ता खुश नहीं है और उनका दावा है कि सभी कर्मचारियों के लिए जगह की कमी के कारण बैठने की व्यवस्था करना व्यावहारिक नहीं है। कंसोर्टियम ऑफ इंडियन एसोसिएशन्स के समन्वयक केई रघुनाथन ने कहा, “यह ज्यादा दयापूर्ण विधेयक है। जो नियोक्ता पहले ही अपने कर्मचारियों का ख्याल रखते हैं, उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है लेकिन चिंता इस बात की है जो अपने कर्मियों का ख्याल नहीं रखते, उनसे कैसे यह सुनिश्चित कराया जाएगा?”
केरल से प्रेरणा मिली है
तमिलनाडु ने पड़ोसी राज्य केरल का अनुकरण करते हुए इस कानून की शुरुआत की है। वहां वर्ष 2018 में पहली बार ऐसा ही बिल पेश किया गया था, जहां जनवरी 2019 में ये कानून बन गया। केरल में साल 2016 से ही महिलाएं और अन्य कर्मचारी ‘राइट टू सिट’ की मांग कर रहे थे। इसके बाद तमिलनाडु में ये बिल लाया गया है, जिससे कई कर्मचारियों को फायदा मिलने वाला है।