दीपावली रौशनी का पर्व है। मिठाई के साथ प्यार बांटने के इश त्यौहार में एक तरफ लोग घरों को सजाते हैं और रौशनी से जगमग करते हैं। तो दूसरी तरफ कुछ लोग इस दिन पूजा पाठ के अलावा अंधविश्वास का सहारा लेते हैं। ये अंधविश्वास है दीवाली के दिन उल्लुओं की बलि देना।
इसलिए दी जाती है बलि
उल्लू को माता लक्ष्मी के साथ जोड़ा जाता है इसके पीछे धारणा प्रचलित है कि यदि दीपावली के मौके पर इस पक्षी की बलि दी जाए तो धन-संपदा में वृद्धि होती है। यही वजह है कि कुछ स्वार्थी लोग इस रौशनी के पर्व पर सैकड़ों उल्लुओं की जान लेते हैं।
आधुनिक वैज्ञानिक युग में भी अंधविश्वास के मकड़जाल में कैद इंसान इस पक्षी का दुश्मन बन बैठा है।
तांत्रिकों का लिया जाता है सहारा
विवेकहीन लोग उल्लू की बलि लेने के लिए तांत्रिकों का सहारा भी लेते हैं। कहा जाता है कि बलि देने वाले इंसान को आधी रात के दौरान स्नान करना पड़ता है। सिर्फ धोती यानि की पूरे शरीर पर और कुछ नहीं होता है। शख्स को अपनी आंखें बंद रखनी पड़ती हैं। तांत्रिक मंत्रों का जाप करते हुए उल्लू को सफ़ेद कपड़े में लेपटते हैं और फिर शराब पिलाते हैं।
महिला और बच्चों की मृत्यु का मिथक
अंधविश्वास के इस मकड़जाल का एक और पहलू है जिसमें कहा जाता है कि बलि देने के दौरान महिलाएं और बच्चों को सामने नहीं होना चाहिए। कहा जाता है कि अगर बलि देते हुए उन्होंने देख लि.ा तो उनकी मृत्यु हो जाएगी।
अपराध है उल्लू को मारना
आपको बता दें, भारतीय क़ानून के अनुसार, उल्लू को मारना या बलि देना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आते हैं, जिसके लिए सज़ा का प्रावधान हैं। ऐसा करने वाले को 3 साल तक की जेल हो सकती है। 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक के मालनाड क्षेत्र में शिकारी उल्लू पकड़ते हैं और उन्हें कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में इनकी तस्करी की जाती है।