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करुणानिधि पेरियर की राजनीति से प्रभावित और हिंदी के विरोधी थे

karunanidhi with periyar करुणानिधि पेरियर की राजनीति से प्रभावित और हिंदी के विरोधी थे

करुणानिधि, ईवी रामासामी पेरियार  की राजनीति के पक्षधर,और हिंदी के विरोधी थे। करुणानिधि युवावस्था में थे।उन दिनों तमिल समाज में असमानता, जातीय भेदभाव और धार्मिक पाखंड के खिलाफ पेरियार की राजनीति की जड़े मजबूत हो रहीं थी।आधुनिक तमिलनाडु के निर्माता, द्रविड़ राजनीति के पुरोधा, पूर्व मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कणगम के प्रमुख करुणानिधि का मंगलवार को देहान्त हो गया। करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को तमिलनाडु के एक निम्नवर्गीय परिवार में हुआ।

 

karunanidhi with periyar करुणानिधि पेरियर की राजनीति से प्रभावित और हिंदी के विरोधी थे
करुणानिधि पेरियर की राजनीति से प्रभावित और हिंदी के विरोधी थे

पेरियार ने एक सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन खड़ा कर हिंदी का विरोध किया था

आपको बता दें कि तमिलनाडु में पेरियार ने एक सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन खड़ा कर हिंदी का विरोध किया था। उन दिनो करुणनिधि युवावस्था में थे। यह आंदोलन ब्राह्मणवाद के कर्मकांड और धार्मिक पाखंड के खिलाफ था।तमिल भाषा पर हिंदी के शिक्षण को किसी दूसरी भाषा पर थोपने जैसी थी।1937 में गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के अनिवार्य शिक्षण लागू करने की योजना थी।लेकिन दक्षिण के क्षेत्रों में इसका जमकर विरोध हो क्षेत्रों में इसका जमकर विरोध हो रहा था। खासकर दक्षिण के राज्य अपने आशियाने में किसी दूसरी भाषा को प्रश्रय देने की बात पचा नहीं पा रहे थे। गौतलब है कि इनमें तमिलनाडु सबसे आगे था।

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करुणानिधि ने बेहद कम उम्र में राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। ईवी रामासामी पेरियार की विचारधारा से प्रभावित करुणानिधि आधुनिक तमिलनाडु के शिल्पकार माने जाते हैं। राजनीतिक जीवन में उन्होंने कई ऐसे काम किए जो किसी भी नेता के लिए मिसाल से कम नहीं है।करुणानिधि एक दशक तक तमिलनाडु की जनता के दिलों पर राज करने वाला नेता थे। करुणानिधि को हिंदी भाषा के विरोधी होने के कारण दशकों तक विरोध का भी सामना करना पड़ा था।

करुणानिधि का उदभव और शिखर पर पहुंचना भाषा विरोध के नाम पर जन्मीं राजनीति से ही हुआ

अगर देखा जाए तो राजनीति में करुणानिधि का उदभव और शिखर पर पहुंचना भाषा विरोध के नाम पर जन्मीं राजनीति से ही हुआ।तमिलनाडु में हिंदी शिक्षण को तमिल पर किसी दूसरी भाषा को थोपने की तरह लिया गया। इसे तमिल अस्मिता से भी जोड़ा गया। उस वक्त पेरियार ने इसका तार्किक विरोध किया। तब पेरियार के कई युवा अनुयायी भी हिंदी के खिलाफ सडकों पर उतर आए। इनमें से करुणानिधि भी एक थे।

महेश कुमार यदुवंशी 

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