रेजिडेंसी भवनों का एक समूह है जिसका निर्माण सन् 1800 में अवध के नवाब सादत अली खान ने कराया था।इसे अंग्रेजी सेना के वरिष्ठ अधिकारी ब्रिटिश रेजिडेंट जनरल के निवास के लिए बनाया गया था। जो कोर्ट में नवाब के पैरोकार हुआ करते थे। 1857 में रेजिडेंसी लंबी लड़ाई का गवाह है।जिसे ‘सिज ऑफ लखनऊ’ कहा जाता है।आपको बता दें कि रेजिडेंसी की दीवारें आज भी गोलियों और गोलों के छेद से पटी पड़ी हैं। हालांकि आज के समय में बड़े-बड़े लॉन और फूलों की क्यारी रेजिडेंसी की खूबसूरती में चार चांद लगाकर पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
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रेजिडेंसी में मौजूद चर्च के पास करीब 2000 अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिवार की कब्रगाह है
रेजिडेंसी में मौजूद चर्च के पास करीब 2000 अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिवार की कब्रगाह है। वहीं पर मौजूद सर लॉरेंस की कब्र पर लिखा है ‘यहां पर सत्ता का वो पुत्र दफन है जिसने अपनी ड्यूटी के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी’।मालूम हो कि इसी कब्रगाह के पास मौजूद एक दूसरी कब्र पर लिखा है ‘रो मत मेरे बेटे मैं मरा नहीं हूं, मैं यहां सो रहा हूं’। रेजिडेंसी में उसके इतिहास को बयां करती है। लखनऊ रेजिडेन्सी के अवशेष ब्रिटिश शासन की स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं।रेजिडेंसी अवध प्रांत की राजधानी लखनऊ में रह रहे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का निवास स्थान हुआ करती थी। जिसके प्रमुख भवनों में बैंक्वेट हॉल, डॉक्टर फेयरर का घर, बेगम कोठी, और उसके पास मौजूद एक मस्जिद जो आज भी अस्तित्व में है। जहां आज भी नमाज अदा की जाती है।
निर्माण नवाब आसफ-उद- दौला ने 1775 में शुरू किया करवाया था
रेजीडेंसी ऐतिहासिक स्थलों में से एक है, रेजीडेंसी में कई इमारतें शामिल हैं। इसका निर्माण नवाब आसफ-उद- दौला ने 1775 में शुरू किया करवाया था और 1800 ई.में इसे नवाब सादत अली खान के द्वारा पूरा करवाया गया। ये गोमती नदी के तट पर स्थित है। रेजीडेंसी के नाम से ही स्पष्ट है कि ये एक निवासस्थान है, यहां ब्रिटिश निवासी जनरल का निवास स्थान था, जो नवाबों की अदालत में ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधित्व किया करते थे। इसके परिक्षेत्र में आवासीय क्वार्टर, शस्त्रागार, अस्तबल, औषधालयों, पूजा स्थानों सहित कई इमारतों की बनी हुई हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में वह हाथी पर बैठकर अंग्रेजों का न केवल सामना करती थीं
इतिहासकार रवि भट्ट ने बताया कि कैसे पहले स्वतंत्रता संग्राम में वह हाथी पर बैठकर अंग्रेजों का न केवल सामना करती थीं। बल्कि उनको एक बार पराजित भी किया था। वहीं अवध के छठे शासक नवाब सआदत अली खां का मकबरा उनके शहजादे और सातवें नवाब गाजीउद्दीन हैदर ने बनवाया था। बताया जाता है कि सन् 1858 के दौरान जब पल्टन छावनी और रेजीडेंसी में चर्च को भारी नुकसान हुआ। यहीं पर अंग्रेजों ने चर्च के रूप में अपनी प्रार्थना की थी। इस मौके पर रवि ने बच्चों से लखनऊ के इतिहास को लेकर कई सवाल पूछे, जिनका जवाब बच्चों ने बखूबी दिया। हेरिटेज वॉक में स्कूल की शिक्षिका मधु सिंह, शिप्रा टंडन, सोनिका बहादुर, अहमद और प्रत्युष गुप्ता भी शामिल हुए।