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10% आरक्षण के खिलाफ DMK ने मद्रास हाई कोर्ट में दाखिल की याचिका

एडीएम के..य 10% आरक्षण के खिलाफ DMK ने मद्रास हाई कोर्ट में दाखिल की याचिका

केंद्र सरकार द्वारा सामान्य जाति के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। बता दें कि 10 फीसदी सामान्य आरक्षण कोटा के लिए संसद में बिल पास होने के निर्णय के खिलाफ द्रविड़ मुनेत्र कणगम (डीएमके) ने मद्रास हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की है। इस याचिका में डीएमके ने केंद्र द्वारा सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने को एससी-एसटी के खिलाफ बताया है। गौरतलब है कि ये याचिका डीएमके पार्टी के सचिव आरएस भारती ने दाखिल की है।

एडीएम के..य 10% आरक्षण के खिलाफ DMK ने मद्रास हाई कोर्ट में दाखिल की याचिका
10% आरक्षण के खिलाफ DMK ने मद्रास हाई कोर्ट में दाखिल की याचिका

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डीएम के द्वारा दाखिल की गई याचिका में तर्क दिया गया है कि केंद्र द्वारा बनाया गया यह कानून संविधान द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ है। 22 पन्नों की इस याचिका में डीएमके ने 19 प्वॉइंट्स में अपनी बात रखी है। आरक्षण बिल पर संसद में वोटिंग से पहले ही डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने आरक्षण बिल को सिरे से खारिज किया था। संसद में भी डीएमके सांसद एम के कनिमोझी ने इस बिल का पुरजोर विरोध किया था। पार्टी ने वोटिंग के दौरान सदन से वॉक आउट भी किया था।

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बता दें कि डीएमके से पहले 10 फीसदी आरक्षण को संसद से मंजूरी मिलने के बाद ही 10 जनवरी को दिल्ली के एनजीओ ‘यूथ फॉर इक्विलिटी’ ने सामान्य वर्ग के पिछड़े लोगों को आर्थिक आधार पर नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण की संवैधानिक वैधता पर सवाल खड़ें करते हुए याचिका दाखिल की थी। एनजीओ द्वारा सु्प्रीम कोर्ट दाखिल की गई याचिका में आरक्षण बिल के लिए संविधान संशोधन अधिनियम पर रोक लगाने की मांग की गई है। एनजीओ ने कहा है कि केंद्र द्वारा किए गए संसोधन से संविधान की मूल संरचना का खंडन होता है।

साल 1992 के इंदिरा साहनी मामले को यूथ फॉर इक्विलिटी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया है। दरअसल इंदिरा साहनी केस में कोर्ट ने कहा था कि संविधान के तहत आर्थिक मानदंड आरक्षण देने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। दिल्ली के इस एनजीओ ने याचिका में लिखा, ‘संविधान संशोधन (103वां) पूर्ण रूप से संवैधानिक मानक का उल्लंघन करता है।

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इंदिरा साहनी मामले में 9 न्यायाधीशों द्वारा कहा गया था कि आर्थिक मानदंड आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। ऐसा संशोधन दोषपूर्ण है और इसे अवैध ठहराया जाना चाहिए। क्योंकि इसमें फैसले का खंडन किया गया है।’ याचिका में कहा गया कि इस संविधान संशोधन से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण के लिए तय की गई 50 फीसदी की ऊपरी सीमा का अतिक्रमण किया गया है।’ लोकसभा चुनाव के ठीक पहले केंद्र सरकार का सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए दिया गया आरक्षण लोकलुभावन कदम माना जा रहा है।

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