नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से महज कुछ महीनों पहले मोदी सरकार ने एक बड़ा मास्ट्रर स्ट्रोक दाव खेला है. मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया है. और अब इसी प्रावधान को बुधवार को संसद की मंजूरी मिल गई. राज्यसभा में इस मामले में लगभग 10 घंटे बहस चली.
165 मतों से मिली मंजूरी
अब इस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर का इंतजार है. पक्ष-विपक्ष ने इस मुद्दे पर राज्यसभा में करीब 10 घंटे की बैठक के बाद संविधान (124 वां संशोधन), 2019 विधेयक को सात के मुकाबले 165 मतों से मंजूरी दे दी. इससे पहले सदन ने विपक्ष द्वारा लाए गए संशोधनों को मत विभाजन के बाद नामंजूर कर दिया. लोकसभा ने इस विधेयक को एक दिन पहले ही मंजूरी दी थी जहां मतदान में तीन सदस्यों ने इसके विरोध में मत दिया था.
लगभग सभी दलों ने किया इस बिल का समर्थन
साथ ही आपको बता दें कि उच्च सदन में विपक्ष सहित लगभग सभी दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया. वहीं कुछ विपक्षी दलों ने इस विधेयक को मोदी सरकार की एक चाल बताई. और कहा कि यह बिल लोकसभा चुनाव से पहले लाए जाने का मतलब है कि मोदी सरकार इसके जरिए अपना सियासी फायदा चाहती है. हालांकि सरकार ने दावा किया कि कानून बनने के बाद यह न्यायिक समीक्षा की अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरेगा क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिए लाया गया है.
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए इसे सरकार का एक ऐतिहासिक कदम बताया. उन्होंने कांग्रेस सहित विपक्षी दलों से यह पूछा कि जब उन्होंने सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने का अपने घोषणापत्र में वादा किया था तो वह वादा किस आधार पर किया गया था. क्या उन्हें यह नहीं मालूम था कि ऐसे किसी कदम को अदालत में चुनौती दी जा सकती है.
विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के द्रमुक सदस्य कनिमोई सहित कुछ विपक्षी दलों के प्रस्ताव को सदन ने 18 के मुकाबले 155 मतों से खारिज कर दिया. इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा इस विधेयक का समर्थन करने के बावजूद न्यायिक समीक्षा में इसके टिक पाने की आशंका जताई गई और पूर्व में पी वी नरसिंह राव सरकार द्वारा इस संबंध में लाये गये कदम की मिसाल दी गई. कई विपक्षी दलों का आरोप था कि सरकार इस विधेयक को लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर लाई है. अन्नाद्रमुक सदस्यों ने इस विधेयक को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए सदन से वॉकआउट किया.