हरिद्वार। बाबा रामदेव का बीते रविवार 25 मार्च को 25 वॉं संन्यास दिवस था, 25 साल पहले ठीक चैत्र माह की शुक्लपक्ष नवमी तिथि को बाबा रामदेव ने संन्यास की दीक्षा लेकर धर्म समाज और देश के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। अपने इस गर्व पूर्ण दिवस पर बाबा रामदेव ने एक ऐसा इतिहास रचा है जो शंकराचार्य या फिर गुरू समर्थराम दास ने ही किया था।
गंगा की गोद में हरिद्वार की पावन भूमि पर योगगुरू बाबा रामदेव ने देश और समाज के उत्थान के लिए 92 युवा विद्वानों को आजीवन संन्यास ब्रह्मचारी के पथ पर अग्रसारित कर दिया है। इनमे से 51 युवक और 41 युवतियां ने जिन्होने ने बाबा से संन्यास की दीक्षा लेकर देश और समाज के कल्याण का बीड़ा उठाया है।
बताया जा रहा है कि योगगुरू बाबा रामदेव ने 2050 तक भारत को आर्थिक और धर्मिक तौर पर सशक्तिशाली देश बनाने का संकल्प लिया है। जिसके लिए उन्होने 1000 संन्यासी को बनाने और राष्ट्र को समर्पित कर जन कल्याण के लिए तैयार करने का भी बीड़ा उठाया है। बताया जा रहा है कि इन्ही 1000 संन्यासियों में किसी एक को बाबा रामदेव अपना उत्तराधिकारी भी घोषित करेंगे।
बीते रविवार को जब पतंजली योगपीठ के ऋषि आश्रम से इन 91 विद्वान युवक और युवतियों की शोभायात्रा निकली तो देश समाज के लिए अपने सुखों का त्याग कर संन्यासी जीवन जीने के लिए आगे आने वाले इन युवाओं को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। हरिद्वार के वीआईपी घाट पर स्वयं बाबा रामदेव ने इनको दीक्षा देते हुए इस पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इन नव संन्यासियों ने पूरे विधि-विधान के साथ दीक्षा संस्कार को पूर्ण कर अपना सूत्र और शिखा को मां गंगा को अर्पित कर दिया।
इस अवसर पर बोले हुए योगगुरू बाबा रामदेव ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि 1000 संन्यासी विद्वान इस देश में खड़ा करना जो हमारी प्राचीनतम विधा को देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैलाएं देश को समर्थशाली बनाने के लिए बड़े कदम उठें और देश को आर्थिक सामाजिक क्षेत्र में मजबूती प्रदान करते हुए एक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा पर कीर्ति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाएं।संन्यासी होना जीवन का सबसे बड़ा गौरव है। अब से सभी संन्यासी ऋषि परंपरा का निर्वहन करते हुए मातृभूमि, ऋषिसत्ता और अध्यात्मसत्ता में जीवन व्यतीत करेंगे। हमें 2050 तक भारत को आध्यात्मिक और आर्थिक तौर पर सबल राष्ट्र बनाना है।
इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने संन्यास,संन्यासियों के जीवन और कर्तव्यों के साथ परम्पराओं का निर्वहन के लिए प्रकाश डालते हुए कहा कि संन्यास जीवन एक संकल्प है जिसमें हम अविवेकपूर्ण कामनाओं और विषय भोगों से मुक्त रहकर संन्यासी बनते हैं। ये सब कुछ हम देश समाज के लिए त्याग करते हैं। हमें समाज और देश के प्रति उत्तरदायित्व को निभाना होता है। गुरू के आदेश को मान कर शिष्य के तौर पर गुरूधर्म और राष्ट्रधर्म का पालन करना कठिन है लेकिन संन्यास जीवन ही कठिक कार्यों को पूर्ण करने के लिए हमें मिला है। इस अवसर पर भारत माता मंदिर के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानंद ने कहा कि गौतम बुद्ध, शंकराचार्य और समर्थ गुरु रामदास के बाद इतनी बड़ी सामूहिक संन्यास दीक्षा किसी ने नहीं दी। इसके लिए योगऋषि बाबा रामदेव को साधुवाद है।एक साथ इतनी बड़ी संख्या में संन्यासियों को देश सेवा में समर्पित करना रामराज्य की स्थापना, ऋषि परंपरा और भावी आध्यात्मिक भारत के स्वप्न को साकार करने जैसा है।