विक्रम संवत 1562 में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को स्वामी हरिदास की सघन-उपासना के फलस्वरूप वृंदावन के निधिवन में श्री बांके बिहारी जी महाराज का प्राकट्य हुआ।
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ये वो दिन है जब एक भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर राधा और माधव एक रंग, एक प्रतिमा में आ विराजे। बिहारी जी के इस प्राकट्य उत्सव को बिहार पंचमी के नाम से ब्रज में जानते हैं।
आज का दिन यानि 28 नवंबर 2022 भी बिहार पंचमी के रूप में मनाया जा रहा है। वृंदावन के कण-कण में राधा-कृष्ण का वास है। ब्रज धाम वृंदावन को सजाया गया है। निधिवन से बिहारी जी के मंदिर तक सब झूम उठे।
सुबह हुआ दुग्धाभिषेक
बांकेबिहारी के प्राकट्योत्सव पर निधिवन की छठा देखते ही बन रही थी। आराध्य की निधिवन राज मंदिर स्तिथ प्राकट्यस्थली पर सुबह से ही भक्तों की भीड़ मौजूद थी। ठीक 5 बजे सेवायतों ने मंत्रोच्चारण के साथ बिहारी जी की प्राकट्यस्थली का अभिषेक किया।
इस प्रक्रिया में श्री बांके बिहारी जी महाराज के प्रतीकात्मक पदचिन्हों को दूध, दही, शहद, घी और जल से स्नान कराया। पूरा परिसर बिहारी जी के जयकारों से गूंजने लगा था। निधिवन की निकुंजों के मध्य प्राकट्यस्थली के दर्शन को भक्तों में उत्साह देखते बना।
निधिवन में गाए गए बधाई गीत
प्राकट्यस्थली के अभिषेक के दौरान जहां बिहारी जी के जयकारों की गूंज थी तो वहीं बधाई के गीत गाए जा रहे थे। कुंज बिहारी श्री हरिदास जी के जयकारे लगाए जा रहे थे।
एक घंटे तक ये अभिषेक चला और उसके बाद आरती हुईं। बांके बिहारी के जन्मोत्सव पर भक्तों ने जमकर धूम मचाई।
चांदी के रथ में निकले स्वामी हरिदास
निधिवन से श्री बांके बिहारी मंदिर तक भव्य शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में बैंड, संगीत, सजे हुए हाथी, झंडे एवं दूर-दूर से आयी कीर्तन मंडली शामिल थे। जिसकी अगुआई कर रही थी स्वामी श्री हरिदास जी की डोली। निधिवन से स्वामी हरिदासजी का चांदी के रथ में बैठ ठा. बांकेबिहारी को बधाई देने निकले तो पूरा शहर झूम उठा। जगह-जगह पर स्वामी जी की आरती उतारी गई भोग चढ़ाया गया।
भक्तों का मानना है कि बिहारी जी इस दिन स्वामी हरिदास जी द्वारा स्वयं अपनी गोद में बैठे भोजन का आनंद लेते हैं। राजभोग आरती के बाद उत्सव के अंत में भक्तों के बीच प्रसाद का वितरण किया गया।