खैबर। भारत में हर चार कोश पर भाषा बदल जाती है। इसी तरह दुनिया में भी अलग-अलग भाषाओं का चलन है, जोकि अपने आप में ही नायाब है। ऐसी ही एक भाषा है जो अब लुप्त होने के कगार पर खड़ी हा या यूं समझ लीजिए की लुप्त हो चुकी है। दरअसल किसी समय में पाकिस्तान के पहाड़ी इलाके में बोली जाने वाली भाषा बदेशी को समझने और बोलने वाले अब सिर्फ इस दुनिया में तीन लोग ही रह गए हैं। हालांकि दुनिया की तमाम भाषाओं के बारे में जानकारी देने वाली एथनोलॉग के अनुसार बीते तीन या अधिक पीढ़ियों से इस भाषा को बोलने वाला कोई भी नहीं है, लेकिन पाकिस्तान के अंदरूनी इलाके से तीन ऐसे शख्स सामने आए हैं, जो अब भी बदेशी भाषा बोलते हैं और सिर्फ इसी भाषा में बात करते हैं।
पाकिस्तान के खैबर में एक 75 वर्षीय बुजुर्ग रहीम गुल बताते हैं कि अब से एक पीढ़ी पहले तक इस गांव के सभी लोग बदेशी भाषा में ही बात किया करते थे। रहीम गुल के दूर के भाई सईद गुल का कहना हैं कि अब हमारे बच्चे और उनके बच्चे बदेशी की बजाए सिर्फ पश्तो ही बोलते हैं। सभी के द्वारा खुद की भाषा का त्याग करने के बाद हम चाहें भी तो अपनी भाषा में किसी से बात नहीं कर सकते क्योंकि किसी को अब ये भाषा आती ही नहीं। इस इलाके में युवाओं के लिए रोज़गार के मौक़े लगभग ना के बराबर हैं। इस कारण यहां से लोगों ने स्वात घाटी का रुख़ किया, जहां वो पर्यटन का व्यवसाय करने लगे और यहीं पर उन्होंने पश्तो सीखी और अब ये लोग अधिकतर इसी भाषा में बात करते हैं।