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जानिए दार्जिलिंग हिंसा की कहानी, किसने भड़काई दंगे की आग

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चार दशक पहले का है मुद्दा
GJM का यह मुद्दा आज का नहीं बल्कि चार दशक पुराना मुद्दा है। साल 1980 में पहली बार सुभाष घीसिंग ने गोरखालैंड को नाम दिया। जिसके बाद बंगाल सरकार ने दार्जिलिंग गोरखा हिल कौंसिल (डीजीएचसी) बनाने पर तैयार हुई। माना जाता है घीसिंग के राज में बीस साल तक यह आंदोलन शांत रहा। लकिन विमल गुरंग के आने के बाद यहां के हालत और भी ज्यादा बिगड़ गए। गोरखा आंदोलन एक बार 1960 के भारत की याद दिलाता है। 60 के दशक में जब देश में भाषा के आधार पर बटवारा हुआ तब मारठी भाषियों ने महाराष्ट्र बनाया तो गुजरती भाषियों ने गुजरात। इससे राज्य के अनेक टुकड़े हुए। जिसमें परिणामं स्वरूप झारखण्ड, छतीससगढ़, तेलंगाना जैसे राज्यों के जन्म हुआ। धीमी विकास गति ने जहा जनता को बुनयादी सुविधाओं के लिए लंबा इंतजार कराया, तो रोज़गार के लिए भी युवाओं को अपना घर छोड़ शहर जाने को मजबूर होना पड़ा किया।

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अगर देश में कही दंगे हो और इस पर राजनीति ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता है। दंगे के साथ ही विपक्षी दलों ने अपनी राजनीतिक रोटी पकाना शुरू कर दिया और साथ ही ममता सरकार के खिलाफ कई संगीन आरोप लगाए। क्रंगेस ने जहां एक तरफ ममता सरकार पर बदले की कार्रवाई करने का आरोप लगाया तो दूसरी तरफ बीजेपी ने बंगाल सरकार द्वारा स्थानीय लोगों की आवाज दबाना चाहने का आरोप लगाया। गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) ने गोरखालैंड वासियों के साथ सौतेला वयवहार करने का आरोप लगाया। आपको बता दें कि दंगे कभी भी किस्सों से नहीं होते है तो अब सवाल यह उठता है कि इस पूरी हिंसा का जिम्मेदारी कौन हैं? अभी हालत लगभग सरकार के हाथ से निकल चुके है पर फिर भी सुबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विदेश यात्रा के लिए नीदरलैंड पहुंच गई हैं। ममता बनर्जी की यात्रा के कारण इस आंदोलन की आग को और भी ज्यादा हवा मिली है। जिसके बाद GJM कार्यकर्ताओं द्वारा सरकार के खिलाफ लगातार प्रदर्शन किया जा रहा है। और इसमें आम लोग पिसते ही जा रहे हैं।

WhatsApp Image 2017 05 24 at 11.43.49 AM 3 जानिए दार्जिलिंग हिंसा की कहानी, किसने भड़काई दंगे की आगPradeep Sharma

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