जून का महीना आते ही दार्जिलिंग में पर्यटकों का तांता लगना शुरू हो जाता है। यहां सैनालियों की तादात जून के महीने में इस कदर बढ़ जाता है की व्यापारियों को इस महीने में अच्छा खासा पैसा कमाने का मौका मिलता है। सैलानी यहां की टॉय ट्रेन का लुफ्त जहां एक तरफ बड़े मजे से उठाते हैं तो दूसरी तरफ इस बार के हालात कुछ और ही बने हुए हैं। चाय के बागानों के लिए मशहूर दार्जिलिंग इन दिनों सुर्खियों का केंद्र बना हुआ है। इस बार चर्चा चाय के बगानों या फिर यहां की वादियों के लिए नहीं हो रही है बलकि इस बार लोग यहां मचे कोहराम की बातें कर रहे हैं।
लोग यहां चल रहे हिंसक आंदोलन की बाते करते हुए दुख जता रहे हैं कि जहां दार्जिलिंग की सुंदर वादी दुनिया भर में मशहूर हैं अब उसका क्या हाल बनता जा रहा है। जहां जाने के लिए लोग कई कई दिनों का इंतजार करते थे तो अब वहां पर जाने के लोग कतरा रहे हैं। यहां आंदोलन की आग इस कदर हावि होकर बोल रही है कि उसने अपने साथ सब कुछ तबाह कर दिया है। यह आंदोलन सिर्फ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सिर्फ एक फैसले के बाद भड़का है। ममता बनर्जी के फैसले के बाद यहां लोगों में इस कदर उनके खिलाफ रोष भर गया है कि अब वह ममता बनर्जी का सख्त विरोध कर रहे हैं। दरअसल ममता बनर्जी ने राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में बंगाली भाषा को पढ़ाना अनिवार्य बनाने का फैसला किया है। ममता बनर्जी के इस फैसले के बाद आंदोलन की चिंगारी इस कदर भड़की की अपने साथ सब को ले डूबी।