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इन वीर सपूतों ने देश के नाम की थी करगिल में अपनी जान, देश ने दी भाव पूर्ण श्रद्धांजलि

कारगिल का युद्ध इन वीर सपूतों ने देश के नाम की थी करगिल में अपनी जान, देश ने दी भाव पूर्ण श्रद्धांजलि

कारगिल युद्ध को 21 साल बीत चुके हैं। लेकिन आज भी उसके निशान जिंदा है। आज कारगिल विजय दिवस पर शहीदों को याद कर श्रद्धासुमन अर्पित की।

नई दिल्ली। कारगिल युद्ध को 21 साल बीत चुके हैं। लेकिन आज भी उसके निशान जिंदा है। आज कारगिल विजय दिवस पर शहीदों को याद कर श्रद्धासुमन अर्पित की। जिन शहीदों ने कारगिल में अपनी जान देश पर निसार की उनके घरों में आज भी सन्नाटा है। लेकिन परिजनों को उनकी शहादात पर आज भी गर्व है लेकिन कहीं न कहीं उनकों खोने का भी अफसोस है।

बता दें कि कारगिल की लड़ाई में लहुरीकाशी (गाजीपुर) के वीर सपूतों ने भी वतन की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर किए थे। इन जांबाज जवानों में धनईपुर के संजय सिंह यादव, पड़इनिया के रामदुलार यादव, पंडितपुरा के जयप्रकाश यादव और पखनपुरा के इश्तियाक खान, भैरोपुर के कमलेश सिंह, बाघी के शेषनाथ सिंह यादव का नाम गर्व के साथ लिया जाता है।

वहीं सभी कारगिल शहीदों ने जान की बाजी लगाकर न केवल दुश्मनों को धुल चटाई थी, बल्कि रणक्षेत्र में उन्हें मार गिराने में भी कामयाब हुए थे। इनकी स्मृति में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। कारगिल शहीद आज भी जिलेवासियों के दिलों में धड़कते रहते हैं। हर साल विजय दिवस हम जनपद के शहीदों को नमन करना नहीं भूलते।

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सरकार ने वादे तो किए, लेकिन निभाने में हीलाहवाली

देवकली विकासखंड अंतर्गत धनईपुर निवासी कारगिल शहीद संजय सिंह यादव की शहादत के बाद सरकार ने कई वादे किए, लेकिन उसे निभाने में हीलाहवाली होती रही। सरकारी सिस्टम में कदम-कदम पर भ्रष्टाचार और कमियों के कारण हम सालों इससे जूझते रहे, लेकिन न्याय नहीं मिला। यह बात शहीद की पत्नी राधिका देवी ने ‘अमर उजाला’ से बातचीत में कही। उन्होंने कहा कि चंद दिनों तक सेना, सरकारी अफसर, जनप्रतिनिधि एवं समाज की संवेदना जुड़ी रही, फिर सबने संघर्ष करने को अकेले छोड़ दिया।

उद्यान का सुंदरीकरण तक नहीं हुआ

मुहम्मदाबाद के कारगिल शहीद रामदुलार यादव की पत्नी प्रमिला यादव का कहना है कि शहीद के नाम पर गांव का समुचित विकास नहीं हुआ। शहीद उद्यान ग्रामीणों के सहयोग से जरूर तैयार हुआ, लेकिन यहां तक जाने के लिए आज भी रास्ते का निर्माण नहीं कराया जा सका है। उद्यान का सुंदरीकरण तक  नहीं हुआ है। गाजीपुर-बलिया मार्ग पर रघुबरगंज में शहीद के नाम पर एक पेट्रोल पंप जरूर स्थापित है। लेकिन अन्य वादे पूरे नहीं हुए। पुत्र की नौकरी के लिए शहीद परिवार सालों सरकारी दफ्तरों की खाक छानता रहा, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

न खेल मैदान सुरक्षित हुआ, न मूर्ति स्थापित हुई

वतन की रक्षा करते कारगिल में शहीद हुए मुहम्मदाबाद तहसील के पंडितपुरा निवासी जयप्रकाश यादव की शहादत को लोग नहीं भूल सकते। वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में जयप्रकाश शहीद हुए थे। लेकिन प्रशासन की उपेक्षा के कारण शहीद के नाम पर गांव में स्थापित खेल मैदान आज तक अतिक्रमण मुक्त नहीं हो सका है। शहीद के भाई ओमप्रकाश बताते हैं कि मांग के बाद भी पंडितपुरा में शहीद जयप्रकाश के नाम पर मूर्ति की स्थापना आज तक नहीं की जा सकी है। पिता विजयशंकर यादव खुद पुलिस अधिकारी पद से रिटायर्ड हैं और उन्हें राष्ट्रपति पदक प्राप्त हुआ है। लेकिन देश के लिए 21 साल की उम्र में बेटे के बलिदान ने उनके पद और कद को बौना बना दिया। पिता की आंखों में बेटे की शहादत का गौरव झलकता है, तो दूसरी तरह पुत्र को खो देने का दर्द भी।

शहीद का गांव आज भी विकास से दूर

भांवरकोल थाना क्षेत्र के पखनपुरा गांव के मोहिउद्दीन खान के बेटे इश्तियाक खान ने कारगिल युद्ध के दौरान तीन जुलाई को देश के लिए प्राणों की आहुति दे दी थी। सरकार ने सहायता राशि दी। साथ में एक गैस एजेंसी भी मिली। मुहम्मदाबाद के हरिबल्लमपुर में यह एजेंसी शहीद की पत्नी रशिदा बेगम के नाम पर चल रही है। वर्तमान में शहीद के गांव पर परिवार का कोई सदस्य नहीं रहता है। वहां का मकान पूरी तरह से जर्जर हो चुका है।

बेटे के न रहने के बाद अब अकेलापन काटता है

बिरनो के शहीद कमलेश सिंह के माता-पिता अकेले जीवन गुजार रहे हैं। उनसे मिलने और बात करने के बाद जैसे उनकी आंखों में कारगिल युद्ध की तस्वीरें उभर गई। बेटे की याद ताजा हो गई, उनका गला रूंध गया। शहीद कमलेश सिंह के पिता अजनाथ सिंह कहते हैं कि पुत्र का पालन कर उसे काबिल बनाने में मां-बाप का बड़ा योगदान होता है। लेकिन बेटे के शहीद होने के बाद अब अकेलापन काटता है। वृद्ध मां-बाप की आंखों में बेटे के न रहने का दर्द साफ दिखाई दे रहा था। अजनाथ भी सेना में रहकर 1965 में कारगिल और उरी सेक्टर में बहादुरी का परिचय दे चुके हैं।

सरकार ने तमाम वादे किए, लेकिन पूरा नहीं हुआ

नंदगंज के कारगिल शहीद शेषनाथ सिंह यादव की पत्नी सरोजा देवी का कहना है कि शहादत के बाद सरकार शहीद के दुखी परिजनों तथा बच्चों के लिए तमाम वादे करती तो है, लेकिन समय बीतने के बाद भूल जाती है। देश के लिए जान देने वाले जवान की हर साल बरसी आती है और ऐसे में वादाखिलाफी का जख्म हरा हो जाता है। बाघी गांव के बलदेव सिंह यादव के पुत्र शेषनाथ सिंह यादव कारगिल की लड़ाई में 15 जून को देश की सेवा करते हुए शहीद हो गए थे। उनकी पत्नी सरोज ने बताया कि शहादत के बाद सरकार ने धनराशि देने के साथ ही एक गैंस एजेंसी भी दी।

शहर में है शहीदों की कुर्बानी की निशानी

कारगिल युद्ध में सरहद की रक्षा करते हुए शहीद होने वाले सैनिकों की स्मृति को संजोने के लिए गाजीपुर जिला शहीद कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालय पर शहीद स्मारक की स्थापना की गई है। इस स्मारक पर कारगिल युद्ध के शहीदों का पूरा विवरण शिलापट्ट पर अंकित है। इस शिलापट्ट पर शहीदों की जन्मभूमि, पिता का नाम, जन्म तिथि, शहादत तिथि की जानकारी अंकित है। हर साल कारगिल विजय दिवस पर बड़ी संख्या में लोग इन शहीदों को याद करते हुए नमन करते हैं।

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