भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और वृंदावन से भक्तों का विशेष लगाव रहा है। हर साल हजारों की तादात में श्रद्धालु वहां जाते हैं। भगवान कृष्ण के कई किस्से और लोक कथाएं आपने सुने होंगे। तो चलिए आपको आज बताते हैं सात ठाकुर जी जो वृंदावन में प्रकट हुए हैं।
1.गोविंददेव जी, जयपुर
रूप गोस्वामी को श्री कृष्ण की ये मुर्ति वृंदावन के गौमा टीला नामक स्थान से वि.संवत 1535 में मिली थी। उन्होंने उसी स्थान पर छोटी सी कुटिया में इस मूर्ति को स्थापित किया। जिसके बाद रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंददेव जी की सेवा पूजा संभाली। उन्ही के समय में आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंद देव जी का भव्य मंदिर बनवाया। इस मंदिर मे गोविंददेव जी 80 साल विराजे। वहीं औरंगजेब के शासन काल में बृज पर हुए हमले के समय गोविंद जी को उनके भक्त जयपुर ले गए। तबसे गोविंदजी जयपुर के राजकीय महल मंदिर में विराजमान हैं।
2.मदन मोहन जी, करौली
यह मूर्ति अद्वैत प्रभु को वृंदावन के द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी। उन्होंने सेवा पूजा के लिए ये मूर्ति मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को सौंप दी, और चतुर्वेदी परिवार से मांग कर सनातन गोस्वामी ने वि.सं 1590 में फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित की। बाद में मुलतान के नामी व्यापारी रामदास कपूर और उड़ीसा के राजा ने यहां मदन मोहन जी का विशाल मंदिर बनवाया। मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हे जयपुर ले गए पर कालांतर में करौली के राजा गोपाल सिंह ने अपने राजमहल के पास बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहन जी की मूर्ति को स्थापित किया। तबसे मदनमोहन जी करौली मे दर्शन दे रहे हैं।
3.गोपीनाथ जी, जयपुर
श्री कृष्ण की ये मूर्ति संत परमानंद भट्ट को यमुना किनारे वंशीवट पर मिली। और उन्होंने इस प्रतिमा को निधिवन के पास स्थापित कर मधु गोस्वामी को इनकी सेवा पूजा सौंपी। बाद में रायसल राजपूतों ने यहां मंदिर बनवाया पर औरंगजेब के आक्रमण के दौरान इस प्रतिमा को भी जयपुर ले जाया गया। तबसे गोपीनाथ जी वहां पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ मंदिर मे विराजमान हैं।
4.जुगलकिशोर जी, पन्ना (म.प्र)
भगवान जुगलकिशोर की यह मुर्ति हरिराम व्यास को वि.संवत 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली। व्यास जी ने उस प्रतिमा को वही प्रतिष्ठित किया। बाद में ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया। यहां भगवान जुगलकिशोर अनेक वर्षों तक विराजे पर मुगलिया हमले के समय उनके भक्त उन्हे ओरछा के पास पन्ना ले गए। ठाकुर आज भी पन्ना के पुराने जुगलकिशोर मंदिर मे दर्शन दे रहे हैं।
5.राधारमण जी, वृंदावन
गोपाल भट्ट गोस्वामी को नेपाल की गंडक नदी मॆ एक शालिग्राम मिला। वो उसे वृंदावन ले आए और केसीघाट के पास मंदिर मे प्रतिष्ठित कर दिया। एक दिन किसी दर्शनार्थी ने कटाक्ष कर दिया कि चंदन लगाए शालिग्राम जी तो एसे लगते हैं मानो कढी में बैंगन पडे हो। ये सुनकर गोस्वामी जी बहुत दुखी हुए पर सुबह होते ही शालिग्राम से राधारमण की दिव्य प्रतिमा प्रकट हो गई। यह दिन वि.संवत 1599 (सन् 1542) कि वैशाख पूर्णिमा का था। जिसके बाद मंदिर की प्रतिस्थापना सन् 1884 में की गई।
उल्लेखनीय है कि मुगलिया हमले के बावजूद यही एक मात्र एसी प्रतिमा है। जो वृंदावन से कही बाहर नहीं गई। इसे भक्तों ने वृंदावन में ही छुपाकर रखा। इसकी सबसे विषेश बात ये है कि जन्माष्टमी में जहां दुनिया के सभी कृष्ण मंदिरों में रात्रि 12 बजे उत्सव होता है। वहीं राधारमण जी कि जन्म अभिषेक दोपहर 12 बजे होता है। मान्यता है ठाकुर जी सुकोमल होते है उन्हे रात्रि में जागना ठीक नहीं।
6.राधावल्लभ जी, वृंदावन
भगवान श्रीकृष्ण की यह सुदंर प्रतिशत प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज में मिली थी। उनका विवाह देवबंद से वृंदावन आते समय चटथावल गांव में आत्मदेव ब्राह्मण की बेटी से हुआ था। पहले वृंदावन के सेवाकुंज में और बाद मे सुंदरलाल भटनागर द्वारा बनवाया गया लाल पत्थर वाले पुराने मंदिर में प्रतिष्ठित हुए।
मुगलिया हमले के समय भक्त इन्हे कामा (राजस्थान) ले गए थे। वि.संवत 1842 में एक बार फिर भक्त इस प्रतिमा को वृंदावन ले आये और यहां नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित किया, तबसे राधावल्लभ जी की प्रतिमा यही विराजमान है।
7.बांकेबिहारी जी, वृंदावन
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को स्वामी हरिदासजी की आराधना को साकार रूप देने के लिए बांकेबिहारी जी की प्रतिमा निधिवन में प्रकट हुई। स्वामी जी ने उस प्रतिमा को वही प्रतिष्ठित कर दिया। मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हे भरतपुर (राजस्थान) ले गए। वृंदावन में भरतपुर वाला बगीचा नाम के स्थान पर वि. संवत 1921 में मंदिर निर्माण होने पर बांकेबिहारी जी एक बार फिर वृंदावन में प्रतिष्ठित हुए, तबसे बिहारी जी यही दर्शन दे रहे हैं।
बिहारी जी की प्रमुख विषेश बात यह है कि यह साल में केवल एक दिन (जन्माष्टमी के बाद भोर मे) मंगला आरती होती है। जबकि अन्य वैष्णव मंदिरों में नित्य सुबह मंगला आरती होने की परंपरा है।