लखनऊ। सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी ने बताया कि प्रकृति से हमें सीख मिलती है। पर्यावरण को संतुलित रखते हुए प्रकृति मे सब कोई एक-दूसरे की सहायता करते हुए संतुलित रहते हैं।
प्रकृति में जैसे ही परिवर्तन आता है प्रकृति भी अपने आप को बदल लेती है जैसे ऋतु का परिवर्तन होते ही हम देखते हैं पेड़-पौधे वातावरण मे अपने आप को रूपांतरित कर लेते हैं और वह अपनी समस्या समाधान करने के लिए सहनशीलता बनाए रखते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति अपना समाधान खुद ही कर लेती हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य अपनी भौतिक समस्या के लिए अलौकिक समाधान ढूंढते हैं जबकि भौतिक समस्या के निदान की शक्ति प्रत्येक के भीतर ही विराजमान है।
स्वामी जी ने बताया कि श्री रामकृष्ण ने अपने मुख्य शिष्य स्वामी विवेकानन्द से कहा कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था अष्ट सिद्धि में से एक सिद्धि के रहते हुए कुछ शक्ति प्राप्त हो सकती है परंतु मुझे न पाओगे सिद्धि द्वारा अच्छी शक्ति बल धन यह सब प्राप्त हो सकता है परंतु ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती तो जब हमारे सामने कुछ कठिन समस्या आ जाती है।
तब हमें अपने भीतर उस समस्या का मुकाबला करने के लिए जो शक्ति छिपी हुई है उस के बल पर उस समस्या का समाधान करना चाहिए ना कि इसके लिए भगवान से प्रार्थना करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ईश्वर से प्रार्थना सिर्फ इसलिए करना चाहिए ताकि हमें भक्ति प्राप्त हो एवं भगवान की कृपा से हम अपनी समस्या खुद ही समाधान कर सके।