नई दिल्ली। 8 मार्च को आमलकी एकादशी है इस एकादशी को फाल्गुन शुक्ल एकादशी भी कहते है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान आंवले के पेड़ में वास करते है। इसलिए आमलकी एकादशी पर आंवले के पेड़ के नीचे बैठ कर भगवान की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन आंवले खाने और दान करने का विशेष महत्व माना जाता है।
आमलकी एकादशी के व्रत की कहानी
वैदिक नाम के एक नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र, और वैश्य चारों वर्णों के परिवार प्रेम और आनंद से रहते थे। इस शहर में हमेशा वेद ध्वनि गूंजा करती थी। इस राज्य में कोई भी व्यक्ति पापी या दुराचारी नहीं था। यहां रहने वाले सभी लोग भगवान विष्णु के भक्त थे और सभी नियम अनुसार एकादशियों का व्रत रखा करते थे।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी आमलकी एकादशी आई। इस बार भी नगर के सभी लोगों ने उल्लास के साथ यह व्रत रखा। राजा ने अपनी प्रजा के साथ आंवले के पेड़ की पूजा कि और भगवान से अपने पापों के लिए माफी मांगते हुए उन्हें नष्ट करने की प्रार्थना कि। इसके बाद सबने रात में जागरण किया। इस जागरण में एक बहेलिया भी पंहुच गया। यह बहेलिया एक पापी व्यक्ति था। उस दिन इस बहेलिए को सुबह से कोई शिकार भी नंही मिल पाया था इसलिए वह सुबह से भूखा था। जब बहेलिया मंदिर पंहुचा तो वह मंदिर के एक कोने में बैठ गया और ध्यान से विष्णु भगवान कि कथा सुनने लगा। इस तरह उस बहेलिया ने पूरी रात जाग कर बिता दी और सुबह घर जाकर उसने भोजन किया। भोजन करने के कुछ समय बाद बहेलिया की मृत्यु हो गई।
जाने- अंजाने बहेलिया ने आमलकी एकादशी का व्रत रख लिया था जिसकी वजह से उस बहेलिया का जन्म राजा विदूरथ के घर हुआ था। इस व्रत को रखने की वजह से ही बलेहिया के पिछले जन्म के सारे पाप नष्ट हो गए थे। साथ ही पुनर्जन्म में बलेहिया ज्यादा प्रभावशाली बन पाए थे।
असल में इस व्रत को करने से आपके इस जन्म के सारे पाप नष्ट हो जाते है और इंसान का अगला जन्म वैभव, सुख और शांति से भरपूर होता है।