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लाक्षागृह: पांडवों को जलाने का यहीं हुआ था षड्यंत्र, अभी भी मौजूद हैं साक्ष्य

लाक्षागृह

प्रयागराज: तीर्थों का राजा कहे जाने वाले प्रयागराज में कई कहानियां मौजूद है। महाभारत से जुड़ा लाक्षागृह यहां से 45 किलोमीटर दूर पूर्व में स्थित है। गंगा यमुना और सरस्वती के संगम प्रयागराज आस्था का बड़ा जमावड़ा मौजूद होता है।

गंगा किनारे 1000 फीट की ऊंचाई पर है लाक्षागृह

हंडिया तहसील से 6 किलोमीटर दक्षिण दिशा में इतिहास की एक बड़ी धरोहर मौजूद है। लाक्षागृह गांव महाभारत की कहानियों को अपने अंदर समेटे हुए हैं। यहां के लोगों की इस स्थान के बारे में आस्था काफी है। पुरातत्व की खुदाई ने लाक्षागृह में पांडव की गुफा होने का भी प्रमाण मिलता है। इसके साथ ही खुदाई में कई ऐसी ऐतिहासिक चीजें मिली जिनसे महाभारत काल के संकेत मिलते हैं।

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लाक्षागृह में रचा गया था षड्यंत्र

महाभारत की कथाओं के अनुसार लाक्षागृह में ही पांडवों को जलाने का षड्यंत्र रचा गया था। इस भवन में हजारों वर्षों का इतिहास आज भी वैसे ही मौजूद है। महाभारत की कथा भारतीय संस्कृति को काफी प्रभावित करती है।

ऐसे हुआ वरुण नगर से लाक्षागृह नामकरण

पहले इस प्राचीन स्थल का नाम वरुण नगर था, फिर यहां लाह का भवन बनाया गया। लाक्षा का शाब्दिक अर्थ लाह होता है। इसी के बाद इस स्थान को लाक्षागृह यानी लाह के घर के रूप में जाना जाने लगा। वहीं स्थानीय लोग इसे पांडव नगरी के नाम से बुलाते हैं।

सोमवती अमावस्या पर लगता है भव्य मेला

इस स्थान पर प्रत्येक सोमवती अमावस्या के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है। प्राकृतिक रूप से संपन्न यह ऐतिहासिक स्थल लोगों के लिए पर्यटन का मनोरम दृश्य तैयार करता है। गंगा के किनारे सुनहरी धारा और मद्धम हवा लोगों को एक अलग दुनिया में ले जाती है। इसके साथ ही साधु संत यहां के माहौल को और पवित्र बनाते हैं।

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गंगा के किनारे की 100 मीटर की दूरी पर महानता केशवदास का मंदिर है। यहां साधु संत भक्ति भाव में ईश्वर की आराधना करते रहते हैं। हर वर्ष बड़े-बड़े अनुष्ठानों के माध्यम से यहां भंडारे का आयोजन होता है। इसी के बगल सेवा आश्रम और गौशाला भी है। जहां भगवान जगन्नाथ और सभी देवी देवताओं की आरती की जाती है।

हंडिया है भीम का ससुराल

लाक्षागृह से 6 किलोमीटर पहले ही हंडिया जगह पड़ती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसे भीम का ससुराल ही कहा जाता है। यहीं के राजा हिडिंब की बेटी हिडिंबा से भीम का विवाह हुआ था। हंडिया क्षेत्र बैजू महाराज और लच्छू महाराज के कत्थक नृत्य के कारण भी लोकप्रिय है।

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