भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने शनिवार को आरोप लगाया कि केरल में मुख्यधारा के सियासी दल अफगानिस्तान पर आतंकवादी समूह के नियंत्रण के बाद तालिबान को समर्थन देने की होड़ में हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ माकपा के नेतृत्व वाले LDF और कांग्रेस के नेतृत्व वाले UDF विपक्ष दोनों पड़ोसी देश में उग्रवादियों के सत्ता में आने के बाद अलग तरह की सियासत कर रहे हैं। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि जो लोग तालिबान समर्थक रुख अपनाते हैं, वे 1921 में राज्य में हुए मोपला दंगों को सफेद करने का प्रयास कर रहे थे। सुरेंद्रन ने अपने एक बयान में कहा, “केरल में मुख्यधारा के सियासी दल तालिबान को समर्थन देने के लिए आपस में होड़ कर रहे हैं। राज्य में राजनीतिक नेता दूध और शहद देकर धार्मिक उग्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।”
वाम सरकार और उसके पुलिस बल पर हमला करते हुए, भाजपा नेता ने बताया कि वे “गैर-जिम्मेदार” रुख अपना रहे हैं क्योंकि राज्य में चरमपंथी ताकतें ताकत हासिल कर रही हैं। उन्होंने राज्य में बिना लाइसेंस के आग्नेयास्त्रों (firearms) के साथ जम्मू और कश्मीर के युवाओं के एक समूह को हाल ही में पकड़ने को “गंभीर” करार दिया।
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सुरेंद्रन के बयान इस बात को लेकर केरल में छिड़ी बहस के मद्देनजर महत्व रखते हैं कि क्या मालाबार विद्रोह उर्फ “मोपला (मुस्लिम) विद्रोह” की रिपोर्ट राज्य के उत्तरी हिस्से में वर्ष 1921 में की गई थी, जो अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह था या सांप्रदायिक दंगा था। जहां माकपा ने विद्रोह को सामंती जमींदारों द्वारा शोषण के खिलाफ सबसे संगठित आंदोलन बताया है, वहीं कांग्रेस ने इसे साम्राज्यवाद विरोधी ताकतों के खिलाफ एक चमकदार आंदोलन बताया है। हालांकि, भाजपा और RSS ने विद्रोह को भारत में तालिबान मानसिकता की पहली अभिव्यक्तियों में से एक के रूप में वर्णित किया है, वामपंथी और कांग्रेस द्वारा इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के हिस्से के तौर पर मानने के कदम का कड़ा विरोध किया है।