नई दिल्ली। पाकिस्तान के साथ हुआ कारगिल का युद्ध हमेशा से ही भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। कारगिल पर फतह हासिल कराने में भारत के अनेकों वीरों ने अपना योगदान दर्ज किया। ऐसा ही एक वीर पुरूष था कैप्टन मनोज कुमार पांडेय जिनके कारगिल में दिए योगदान को कभी भूला नहीं जा सकता। अगर मेरे फर्ज की राह में मौंत भी रोड़ा बनी तो मैं कमस खाता हूं कि मैं मौंत को भी मात दे दूंगा।
ऐसे कहने वाले और इसी राह पर चलने वाले कैप्टन मनोज पाण्डेय को आज 25जून उनकी पुण्यतिथी के दिन याद कर रहे हैं। जिस उम्र में बच्चें खेलना पसंद करते हैं उस उम्र में देश की सेवा करने का जज्बा रखने वाले मनोज 25 जून 1975को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रुधा गाँव में जन्मे थे।
परमवीर चक्र का सपना देखने वाले मनोज कुमार हमेशा से देश की सेवा करना चाहते थे मनोज का यहीं जज्बा उन्हें NDA तक ले गया।
मनोज ने ना सिर्फ NDA का सपना देखा बल्कि इस सपने को साकार करते हुए देश की सेवा में अपना नाम स्वर्ण पन्नों में दर्ज कराया। मनोज को पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युध्द के दौरान वीरगित प्राप्त हुई। मनोज माण्डेय परमवीर चक्र से सम्मानित वीर है जिन्हें 9 में मरणोपरांत के रुप में सम्मान मिला।
मनोज की शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ में हुई और वहीं से उनमें अनुशासन भाव तथा देश प्रेम की भावना संचारित हुई जो उन्हें सम्मान के उत्कर्ष तक ले गई। वह शुरू से ही एक मेधावी छात्र थे और खेल-कूद में भी बड़े उत्साह से भाग लेते थे। दरअसल उसकी इस प्रकृति के मूल में उनकी माँ की प्रेरणा थी। वह इन्हें बचपन से ही वीरता तथा सद्चरित्र की कहानियाँ सुनाया करती थीं और वह मनोज का हौसला बढ़ाती थीं कि वह हमेशा सम्मान तथा यश पाकर लौटें।
आतंकवादी गुट से मुठभेड़ में शहीद
मनोज की मां के आशीर्वाद से मनोज ने अपना सपना पूरा किया और एक कमीशंड ऑफिसर ग्यारहवां गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में उनकी तैनाकी की गई। मनोज ने सीनियर सेकेंड लेफ्टिनेंट पी. एन. दत्ता के साथ एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भरा काम पूरा किया। यही पी.एन दत्ता एक आतंकवादी गुट से मुठभेड़ में शहीद हो गए और उन्हें अशोक चक्र की प्राप्ति हुई।
साल 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अमन और भाईचारे की बस लेकर लाहौर रवाना हुए थे। लेकिन उस वक्त पाकिस्तान करगिल जंग की तैयारी पूरी कर चुका था। लाइन ऑफ कंट्रोल के पास करगिल सेक्टर में आतंकवादियों के भेस में पाकिस्तानी सेना कई भारतीय चोटियों पर कब्जा कर चुकी थी।
गोरखा रेजीमेंट के लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे सियाचिन की तैनाती के बाद छुट्टियों पर घर जाने की तैयारी में थे। लेकिन अचानक 2-3 जुलाई की रात उन्हें बड़े ऑपरेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई। लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे को खालुबार पोस्ट फतह करने की जिम्मेदारी मिली। रात के अंधेरे में मनोज कुमार पांडे अपने साथियों के साथ दुश्मन पर हमले के लिए कूच कर गए।
दुश्मन ऊंचाई पर छिपा बैठ कर नीचे के हर मूवमेंट पर नजर रखे हुए था। एक बेहद मुश्किल जंग के लिये मनोज कुमार अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढ़ रहे थे. पाकिस्तानी सेना को मनोज पांडे के मूवमेंट का जैसे ही पता चला उसने ऊंचाई से फायरिंग शुरु कर दी। लेकिन फायरिंग की बिना कोई परवाह किये मनोज काउंटर अटैक करते हुए और हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए आगे बढ़ रहे थे।
‘परमवीर चक्र जीतना है’
मनोज कुमार पांडे से जब सेना में भर्ती के लिए इंटरव्यू में पूछा गया कि आप सेना में क्यों शामिल होना चाहते हैं तब उनका जवाब था कि वो परमवीर चक्र हासिल करना चाहते हैं। मनोज का जवाब सुनकर सब हैरत में पड़ गए थे। मनोज ने अपनी कही बात को सच साबित कर दिखाया। करगिल की जंग में खालुबार पोस्ट फतह में बलिदान देकर वो परमवीर चक्र का मेडल अपनी वर्दी पर सजा चुके थे। कारगिल शहीद परमवीर चक्र विजेता मनोज पान्डेय की जयन्ती पर आज हम उनको शत शत प्रणाम करते हैं और उऩके इस अतुल्य योगदान के लिए उऩका आभार प्रकट करते हैं।