तालिबान ने जब से अफ़ग़ान पर कब्जा किया है तब से हर रोज नई-नई घटनाएं सामने आ रही हैं। तालिबान अब काबुल में अपनी नई सरकार को लेकर योजना बना रहे हैं। लेकिन अभी तक उनकी सरकार नहीं बनी है।
पंजशीर घाटी बना राह का रोड़ा !
राजधानी काबुल के उत्तर-पूर्व की पंजशीर घाटी का यह रोड़ा राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा के लड़ाके हैं। चारों ओर से तालिबान से घिरे होने के बावजूद, ये लोग हार मानने से इंकार कर रहे हैं। तालिबान के वरिष्ठ नेता आमिर ख़ान मोतक़ी ने पंजशीर घाटी में रहने वाले लड़ाकों से अपने हथियार डालने का आह्वान किया है, लेकिन अब तक इस अपील पर अमल के कोई संकेत नहीं दिख रहे।
पंजशीर घाटी की सीमाओं पर झड़प जारी
विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद से अब तक पंजशीर घाटी की सीमाओं पर हुई झड़पों में तालिबान के दर्जनों लड़ाके मारे जा चुके हैं और अब भी लड़ाई जारी है। अफ़ग़ानिस्तान में विरोधियों के आखिरी गढ़ पंजशीर घाटी का भाग्य अधर में लटका हुआ है।
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सैकड़ों लोगों की गई जान
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पंजशीर के लड़ाकों की तालिबान से ज़बरदस्त लड़ाई जारी है। ताज़ा ख़बर के अनुसार, इस लड़ाई में सैकड़ों लोगों के मारे जाने की ख़बर है। हालांकि तालिबान के सूत्रों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से दावा किया है कि उन्होंने पंजशीर पर भी अपना क़ब्ज़ा कर लिया है। लेकिन पंजशीर के लड़ाकों ने तालिबान के इस दावे को खारिज किया है।
अमरुल्ला सालेह ने दावे को किया खारिज़
एनआरएफ़ के नेताओं में से एक अमरुल्ला सालेह ने उस दावे को भी खारिज किया है। जिसमें कहा गया था कि सालेह पंजशीर घाटी छोड़कर भाग गए हैं। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया है कि वहां के हालात ‘कठिन’ हैं।
गौरतलब है कि पंजशीर घाटी, अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल के उत्तर में स्थित है। यह देश के सबसे छोटे प्रांतों में से एक है। साथ ही यह प्रांत अभी भी तालिबान के अधीन नहीं आया है। चारों ओर से पर्वत चोटियों से घिरे तालिबान विरोधियों के इस पारंपरिक गढ़ में 1.5 लाख से दो लाख लोग रहते हैं।