सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्य कहते हैं। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व होता है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है।
ऐसे करते हैं पूजा
इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है।
सोमवती अमावस्या की कथा
सोमवती अमावस्या को लेकर कई कथाएं हैं। उनमें से एक है गरीब ब्राह्मण परिवार की कथा। उनकी एक कन्या थी जो कि बहुत ही प्रतिभावान एवं सर्वगुण संपन्न थी। जब वह विवाह के योग्य हो गई तो ब्राह्मण ने उसके लिए वर खोजना शुरू किया। कई योग्य वर मिले परन्तु गरीबी के कारण विवाह की बात नहीं बनती। एक दिन ब्राह्मण के घर एक साधु आये। कन्या के सेवाभाव देख साधु बहुत प्रसन्न हुए और दीर्घायु होने का आशर्वाद दिया। ब्राह्मण के पूछने पर साधु ने कन्या के हाथ में विवाह की रेखा न होने की बात कही। इसका उपाय पूछने पर साधु ने बताया कि पड़ोस के गांव में सोना नामक धोबिन का परिवार है। कन्या यदि उसकी सेवा करके उससे उसका सुहाग मांग ले तो उसका विवाह संभव है।
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सोमवती अमावस्या का महत्त्व
हिन्दू धर्म शास्त्रों में सोमवती अमावस्या के दिन किए गए दान का विशेष महत्व माना गया है। ऐसी मान्यता है कि सोमवती अमावस्या के दिन स्नान-दान करने से घर में सुख-शांति और खुशहाली आती है।
धार्मिक मान्यता है कि सोमवती अमावस्या के पावन दिन पर पितरों का तर्पण करने से उनका विशेष आर्शीवाद प्राप्त होता है और जीवन में सुख- समृद्धि मिलती है।
सोमवती अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व होता है। स्नान करने और उसके बाद दान देने से लाभ कई गुना अधिक फलदायी होता है।
हिंदू धर्म शास्त्रों में सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव की पूजा- अर्चना करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
सोमवती अमावस्या के पावन दिन को माता लक्ष्मी की पूजा करना भी अत्यंत लाभकारी होता है।
व्रत के नियम
इस दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करें। पवित्र नदी की अनुपलब्धता के चलते भक्त को किसी भी शुद्ध जल से स्नान करना चहिये। उसके बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करके भगवान की आराधना करें। संभव हो तो व्रत भी रखें। उसके बाद भगवान शिव और पार्वती की आरती करें. और अंत में प्रसाद वितरण करें।