रूस और यूक्रेन में हुआ सीजफायर अस्थाई है। लेकिन आम लोगों के मन में अब भी कई सवाल उमड़-घुमड़ रहे हैं। मसलन, क्या रूस अब भी यूक्रेन पर हमला करेगा? जंग हुई तो यह सरहदों तक सीमित रहेगी या शहरों तक भी पहुंचेगी? क्या इससे और भी देशों को खतरा होगा? 20 फरवरी तक पुतिन क्यों जंग टालना चाहेंगे?
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तीसरी वर्ल्ड वॉर की आहट!
सीजफायर के बाद भी अगर रूस-यूक्रेन में युद्ध होता है तो तीसरा वर्ल्ड वॉर शुरू हो सकता है। नाटो के इस जंग में कूदने के बाद पूरी दुनिया की निगाहें इस मसले पर टिकी हुई हैं। 7 सवालों के जरिए समझने की कोशिश करते हैं कि मामला कहां तक जा सकता है।
नम्बर-1
क्या यूक्रेन पर हमला कर पाएगा रूस?
मीडिया रिपोर्टस के अनुसार उम्मीद तो यही है कि जंग अब भी टाली जा सकती है। रूस अगर जिद पर अड़ा दिखता है, तो उसे इस बात का भी बखूबी अंदाजा है कि नतीजे क्या होंगे। पुतिन जानते हैं कि जंग का दायरा बढ़ा, तो चीन उनका खुलकर साथ नहीं देगा। अमेरिका और नाटो का रूस सैन्य ताकत से मुकाबला तो कर लेगा। लेकिन आर्थिक मोर्चे पर उसकी तबाही पर मुहर लग जाएगी।
नम्बर-2
जंग सरहदों तक रहेगी या शहरों तक पहुंचेगी?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस के बाद सबसे बड़ा मुल्क बना। जंग हुई तो यह सरहदों तक ही सीमित रहेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता। वजह यह है कि जंग में यूक्रेन के साथ इंटरनेशनल पार्टनर्स जैसे अमेरिका और नाटो भी होंगे। रूस पर दबाव बढ़ेगा तो वो यूक्रेन के शहरों को भी निशाना बना सकता है। वो उसे आर्थिक और सैन्य तौर पर तबाह करने की कोशिश करेगा। लेकिन, नाटो और अमेरिका की मौजूदगी उसे ऐसा करने से रोक सकती है।
नम्बर-3
हमला हुआ तो कितने लोग मारे जाएंगे?
‘द वोग’ के मुताबिक- यह सवाल बेहद अहम है और इसका जवाब देना मुश्किल है। 2014 में रूस ने यूक्रेन पर हमला करके क्रीमिया को उससे अलग किया था। तब से अब तक 14 हजार यूक्रेनी जंग की किसी न किसी सूरत में मारे जा चुके हैं। इनमें सैनिक भी हैं और आम लोग भी। रूस के पास 29 लाख तो यूक्रेन के पास सिर्फ 11 लाख सैनिक हैं। दोनों ही मुल्कों को जान-ओ-माल का भारी नुकसान होगा।
नम्बर-4
जंग हुई तो कितने देश चपेट में आएंगे?
अगर जंग शुरू हुई तो ये मानना बहुत बड़ी भूल होगी कि ये रूस और यूक्रेन की सरहदों तक ही सीमित रहेगी। इसकी आंच बाल्टिक देशों जैसे लताविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया तक पहुंच सकती है। ये बेहद अमन पसंद देश हैं और इनकी सैन्य ताकत भी कुछ खास नहीं है। जंग की सूरत में ये देश हिफाज के लिए अमेरिका और नाटो सहयोगियों की तरफ देखेंगे।
नम्बर-5
रूस को नाटो से डर या बात कुछ और?
डिफेंस एक्सपर्ट रोसेनबर्ग न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखते हैं- अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन का सवाल बिल्कुल वाजिब है। उन्होंने पिछले हफ्ते रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से पूछा था- रूस की सीमाओं का सिर्फ 6% हिस्सा ऐसा है, जो नाटो देशों से लगता है। क्या इससे भी आपकी नेशनल सिक्योरिटी को खतरा है? ये भी छोड़िए। कई नाटो देशों जैसे तुर्की को रूस S-400 जैसे खतरनाक मिसाइल डिफेंस सिस्टम बेचता है, यानी उसके इन देशों से बहुत अच्छे रिश्ते हैं। दरअसल, पुतिन का इरादा जंग नहीं, बल्कि घुसपैठ करके यूक्रेन में रूस समर्थित सरकार बनाना है।
नम्बर-6
क्या 20 फरवरी तक जंग टालेंगे पुतिन?
‘दि डिप्लोमैट’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस और चीन के अच्छे रिश्ते हैं। पुतिन भी संविधान बदलकर एक तरह से हमेशा के लिए राष्ट्रपति बन गए और चीन में शी जिनपिंग ने भी यही किया। चीन में 4 से 20 फरवरी तक विंटर ओलिंपिक्स गेम होने हैं। अगर जंग छिड़ती है तो कई यूरोपीय देश इन खेलों का बायकॉट कर सकते हैं। इससे चीन की इमेज खराब होगी, जिनपिंग का दबदबा कम होगा। दूसरी तरफ, अमेरिका और नाटो इस वक्त का इस्तेमाल डिप्लोमैटिक सॉल्यूशन निकालने के साथ ही जंग की तैयारियों के लिए भी कर लेंगे। चीन की खामोशी के मायने भी यही हैं कि वो रूस को मैसेज भेज चुका है।
नम्बर-7
क्या पुतिन सबसे बड़ी गलती कर चुके हैं?
अमेरिकी डिफेंस एक्सपर्ट रॉबर्ट शुल्ज कहते हैं- याद कीजिए डोनाल्ड ट्रम्प का दौर। उनके रवैये की वजह से तमाम नाटो सहयोगी अमेरिका से दूर हो गए थे। बाइडेन आए तो उन्होंने फिर नाटो को एकजुट करने की मुहिम चलाई। मकसद था चीन को हर मोर्चे पर रोकना। पुतिन ने यूक्रेन पर हमले का मंसूबा बनाया तो इससे यूरोप के हर देश को लगा कि भविष्य में उन्हें भी खतरा होगा।
लिहाजा, बाइडेन को तो पुतिन के इरादों के चलते जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई। क्योंकि नाटो देश फिर पूरी ताकत से अमेरिकी छतरी के नीचे आ गए। अब खतरा चीन और रूस को ही ज्यादा होगा। क्योंकि इसमें कोई दो राय नहीं कि चाहे इकोनॉमी हो या मिलिट्री पॉवर। आज भी अमेरिका और नाटो का कोई मुकाबला नहीं ।