हाथरस रेपकांड को एक साल होने के बाद भी पीड़िता का परिवार खौफ में है। घटना से ज्यादा वह अपनी जाति की वजह से डरे हुए हैं। हाथरस की एक महिला का कहना है कि अगर इन लोगों के घर के बाहर पुलिस तैनात कर दी गई है तो उससे ये लोग ठाकुर नहीं बन जाते जो हैं वहीं रहेंगे। महिला के शब्दों में उची जाति का होने का अभिमान साफ छलक रहा है। साथ ही भारत के संविधान के लिए भी बेरूखी भी साफ देखी जा सकती है। अपवे शब्दों की इस्तेमाल करते हुए वह महिला ये भई भूल गई कि जो वह बोल रही है वह कानून जुर्म है। जब महिला से पूछा गया कि क्या आप हरिजनों के साथ बैठकर खाना खा सकती हो तो उसने हसते हुए कहा कि लगता है तुम हरिजन हो जो ऐसा सवाल कर रहे हो।
बता दें कि उत्तर प्रदेश का हाथरस गांव उस वक्त सुर्खियां बन गया। जब एक दलित लड़की के साथ गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई थी। इस मामले में तथाकथित उची जाति के चार लोग जेल में बंद है। हाथरस गांव के इस मामले को देश विदेश सभी मीडिया ने कवर किया था। लेकिन एक साल के बाद भी भारत में दलितों की स्थिति को लेकर एक बहस छिड़ी हुई थी। लेकिन एक साल के बाद भी िस गांव में जातिवाद की जड़े और मजबूत होती दिख रही है। पीड़ित पिरवार को अभी जातिवाद का सामना करना पड़ रहा है। पीड़िता के भाई का कहना है कि गांव में उनके प्रति तिरस्कार और ज्यादा बढ़ गया है।
पीड़िता के भाई का कहना है कि गांव में ऊंची जाति के लोग हमें बहुत ही निची निगाहों से देखते है। उनका कहना है कि देश में जातिवाद तक खत्म नहीं होगा जब तक लोग अपनी सोच को नहीं बदलेंगे। इस देश में ये सदियों से चलता चला आ रहा है। जैसे पहले होता था आज भी वही होता है। जब तक लोग अपनी सोच नहीं बदलेंगे तब तक ये चलता रहेगा।