नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में 30 फीसदी हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने और केंद्रीय व सरकारी योजनाओं के तहत सुविधा देने के मामले को लेकर केंद्र और राज्य की बीजेपी समर्थित सरकार सुप्रीम कोर्ट में आमने-सामने आ गई। जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं के अधिकारों को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि पहले जम्मू-कश्मीर सरकार ने भरोसा दिलाय था कि वो इस मुद्दे पर कानून बनाएंगे और राज्य में अल्पसंख्यक आयोग बनाएंगे, लेकिन अब राज्य सरकार अपने इस फैसले से पीछे हट रही है। केंद्र सरकार के वकील ने कोर्ट में कहा कि इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक विभाग के सचिव और जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव की अगुवाई में ज्वाइंट कमेटी का गठन किया गया है।
सरकार ने कहा कि इस विभाग के गठन के बावजूद भी जम्मू कश्मीर सरकार बातचीत पर सहमत नहीं हो रही है। वहीं राज्य सरकार के वकील ने कहा कि केंद्र ने बैठक का जो ब्यौरा दिया है वो सही नहीं है और राज्य ने कानून लाने को नहीं बल्कि इस पर उचित वक्त में फैसले की बात की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर इस मुद्दे पर सरकार का ये रुख है तो कोर्ट खुद ही मेरिट के आधार पर सुनवाई करेगा और मामले की सुनवाई 4 हफ्ते बाद तय कर दी। आपको बता दें कि इससे पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर सरकार आपस में बैठे और ये तय करें कि क्या जम्मू कश्मीर में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं या नहीं।
इसके तहत उन्हें कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चार हफ्ते में सरकार फैसला ले, जिसके लिए कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा था। गौरतलब है कि अंकुर शर्मा द्वारा दाखिल की गई इस याचिका में कहा गया है कि राज्य में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। इसके बावजूद राज्य में 68 फीसदी मुस्लिमों को ही अल्पसंख्यक के तहत लाभ मिल रहा है जबकि सही मायने में राज्य के 30 फीसदी हिंदुओं को ये सुविधाएं मिलनी चाहिए। याचिका में ये भी कहा गया है कि पिछले 50 साल से राज्य में अल्पसंख्यकों को लेकर कोई गणना नहीं हुई है और ना ही अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया है।