कासगंजः गंगा दशहरा पर मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के संबंध में कई कथाओं में कहा गया है कि आज से लाखों वर्ष पहले अयोध्या के राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया था। उन्होंने अश्वमेज्ञ यज्ञ का घोड़ा छोड़ दिया और घोड़े की रखवाली के लिए राजा सगर के 60 हजार पुत्र व सेना साथ गई। राजा के अश्वमेघ यज्ञ से भयभीत इंद्र ने एक चाल चली।
देवराज इंद्र ने अवसर पाकर उस घोड़े को चुरा लिया और ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। उस वक्त कपिल मुनि ध्यान में लीन थे, इसलिए उन्हें इंद्र की इस हरकत का पता नहीं चला।
वहीं, दूसरी ओर राजा के पुत्र घोड़े की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे। घोड़े को खोजते हुए राजा के पुत्र पाताल लोक पहुंच गए। यहां कपिल मुनि के आश्रम में घोड़े को बंधा देख वे क्रोधित हो गए और कपिल मुनि को अपशब्द कहने लगे।
राजा के पुत्रों को लगा कि कपिन मुनि ने ही अश्व को चुराया, इसलिए वह मुनि पर कुपित होकर उनको कटुवचन सुनाने शुरू कर दिए। जिसकी वजह से कपिल मुनि का ध्यान भंग हो गया और क्रोधित होकर उन्होंने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया।
कहा जाता है कि अपने पित्तरों को मुक्ति दिलाने के लिए भागीरथ ने इसी पाताल लोक में मां गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए घनघोर तपस्या की थी।