अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा तो हो गया है। लेकिन इसके साथ ही अफगानिस्तान की जमीन के निचे दबे खजाने पर दुनिया की नजर टिकी है। अफगानिस्तान की जमीन के निचे सोना, तांबा और बहुत कम मिलने वाला लिथियम छुपा हुआ है। अगर अफानिस्तान की जमीन में छुपे खजाने की कीमत की बात करें तो उसकी कीमत एक ट्रिलियन डॉलर की हो सकती है। लेकिन अब तालिबान के कब्जे के बाद ये सवाल उठ रहा हैं कि इस खाजने पर किस का अधिकार होगा।
बता दें कि जैसे ही अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाने का फैसला लिया। वैसै ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमा लिया। अफगानिस्तान सालों से युद्ध जैसे हालात झेल रहा है। लेकिन वह अपने ऊपर तालिबान को हावी करने से नहीं रोक पाया। लेकिन क्या अब तालिबान यहां के प्राकृतिक संपदा, मानव संसाधन और भौगोलिक स्थिति का फ़ायदा तालिबान उठा पाएगा।
वहीं सोवियत और अमेरिका का कहना है कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों में सोना, ताबा, बॉक्साइट, लौह अयस्क के साथ कई कीमती खजाना मौजूद है। अफगानिस्तान की जमीन में इतना खजाना दबा हुआ कि वह अब तक उसे बेच नहीं पाया है। उस खजाने की कीमत इतनी है कि उसे बेचकर वहां की जनता आराम से अपनी जिंदगी गुजार सकती हैं।
वहीं इस खजाने को पाने के लिए ब्रिटेन, कनाडा, और चीन के निवेशकों ने कई एग्रीमेंट किए थे लेकिन किसी भी देश ने वहां खनन शुरू नहीं किया। व्यापार के मामले में अन्य देशों के मुकाबले अफगानिस्तान को 190 में से 173वें स्थान पर रखा गया। वहीं किसी को भी आज तक इस बात की जानकारी नहीं हुई कि आखिर खनन का काम किस जगह करना चाहिए।
1960 के दशक में ये जानकारियां सोवियत संघ के भू-वैज्ञानिकों ने जमा की थी। लेकिन उसके बाद से ही सोवियत और अफगान के बीच युद्ध की स्थिति बनी रही। इस बीच अमेरिका का दखल हुआ। उसके बाद सभी फाइलों पर धूल जमती रही न तो खनन हुआ और न ही कभी फेक्ट्रियां बन पाई। तांबे और लोहे को ज़मीन से नहीं निकाला जा सका, तो वहाँ की पहाड़ियों को लाल और हरे रंग से पेंट कर दिया गया है।