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होली के दौरान पूजन करें या नहीं, जानिए क्या है होलाष्टक

होली होली के दौरान पूजन करें या नहीं, जानिए क्या है होलाष्टक

आदित्य मिश्र, लखनऊ: रंगों का त्यौहार इस वर्ष 29 फरवरी को देश भर में मनाया जायेगा। हिंदू परंपरा में होली का त्यौहार एक बड़े आयोजन के तौर पर होता है। होलाष्टक भी इसी बीच में पड़ता है, यह आपस में प्रेम भाव बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। इस दौरान अनेक रंगों से इस त्यौहार में रौनक भरी जाती है।

क्या पूजन करना सही है?

होली में पूजन करना चाहिए या नहीं, इस पर मिला-जुला जवाब मिलता है। आचार्य राजेंद्र तिवारी के अनुसार होली रंगों से मनाई जानी चाहिए। त्यौहार खुशियों का ही पूरक है, लेकिन होली में पूजन-अर्चन का एक निश्चित नियम है। उनके अनुसार होलाष्टक के दौरान पूजा नहीं करनी चाहिए।

क्या है होलाष्टक?

होली अष्ट दिवस का एक पर्व है, जिसे होलाष्टक कहते हैं। फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी से फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक चलने वाला यह पर्व होलाष्टक के नाम से जाना जाता है। इन दिनों धार्मिक कार्य निषेध होते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद हुए, जो भगवान नारायण के परम भक्त थे।

पिता बना भक्ति का दुश्मन

उनके पिता हिरण्यकश्यप भगवान नारायण को नहीं मानते थे, हिरण्यकश्यप को जब पता चला की इनका पुत्र भगवान नारायण से प्रेम करता है। फिर वह अपने पुत्र को मारने के लिए अनेक जतन करने लगे। ईश्वर की पूजा करने से रोकने के लिए पिता ही पुत्र का दुश्मन बन बैठा।

बेटे को कभी पहाड़ से फेंकने की कोशिश की गई तो कभी जलते अंगारों में डालने की साजिश हुई। भक्त बेटे को मारने के लिए पिता ने सभी तरीके अपना लिए। इन 8 दिनों में प्रहलाद को बड़े कष्ट हुए, लेकिन नारायण की भक्ति में थोड़ी भी कमी नहीं आई।

होली के दौरान पूजन करें या नहीं, जानिए क्या है होलाष्टक
होलिका
होलिका की मदद से की मारने की साजिश

आठवें दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया। प्रहलाद को मारने के लिए उसे भेजा गया। उसे यह वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। होलका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर जलती हुई चिता पर बैठ गई। भगवान की कृपा से प्रहलाद की रक्षा हुई और होलिका का दहन हो गया।

उसके बाद भगवान ने नरसिंह रूप में हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। जब हिरण्यकश्यप द्वारा भक्त प्रहलाद को अनेक कष्ट दिए जा रहे थे, यह वही 8 दिन थे जिसे आज होलाष्टक कहा जाता है। इन 8 दिनों में भक्त प्रहलाद की वेदना को देखकर देवता बड़े दुखी रहे। इसीलिए उन्होंने समस्त पूजा पर रोक लगा दी, तभी से होलाष्टक पर देव पूजन निषेध है।

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