भाजपा की क्या है रणनीति
भाजपा की माने तो उसके पाले में मुस्लिम वोटरों का प्रतिशत ना के बराबर रहता है। पार्टी ने इस बार किसी भी मुस्लिम को टिकट ना देख ये साफ कर दिया है उसे 19 फीसदी वोटरों की चिंता नही है। क्योंकि इन 19 फीसदी वोटरों में 2 करोड़ पुरूष और 1 करोड़ 80 लाख महिला वोटर हैं । भाजपा अब 3 तलाक के मुद्दे से मुस्लिम महिलाओं को साधने में जुटी है। क्योंकि महिलाओं का वोट गुप्त होता है। इसके साथ ही भाजपा की नजर इस समुदाय के वोट के बंटवारे पर भी टिकी है। क्योंकि असम का रण भाजपा ने मुस्लिम वोटरों के बंटवारे के चलते जीता था। भाजपा अपने सधे समीकरणों पर चल कर यूपी का ये किला फतह करने के फिराक में साफ दिख रही है।
पिछले चुनाव और मुस्लिम वोटरों का नजरिया
पिछले 2012 के विधान सभा चुनाव की समीक्षा रिपोर्टों को देखे तो पता चलता है कि 70 मुस्लिम सीटों में से सपा को 37 सीटें और बसपा को 13 सीटें, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के हिस्से 8 सीटें आई थीं। इसी तरह 30 फीसद से ज्यादा मुसलमानों वाली 73 सीटों में 35 पर सपा, 13 पर बसपा और 6 पर कांग्रेस राष्टीय लोक दल गठबंधन जीता था। यानी सूबे की 403 विधान सभा में 143 सीटें मुस्लिम आबादी की ओर से तय की जाती हैं।
क्या है आंकलन मुस्लिम वोटरों का
अब बात अगर करें 2002 विधान सभा चुनाव की तो 143 सीटों में से सपा को 37 फीसद, बसपा को 16 फीसद, कांग्रेस को छह और अन्य को 18 फीसद सीटें मिली थी, जबकि भाजपा के पाले में तब 23 फीसदी सीटें आई थीं। उसके बाद अगर हम बात 2007 की करें तो 2007 में इन 143 सीटों में से सपा को 26 , बसपा को 44, कांग्रेस को 3 और अन्य को 8 फीसदी सीटें मिली थीं, तब भी भाजपा के पाले में 19 फीसदी सीटें थीं। इसके बाद अगर बीते 2012 विधान सभा चुनाव की करें तो 143 सीटों में से सपा ने 48 फीसद , बसपा को 18 और कांग्रेस को 8 फीसदी सीटें मिली थीं, लेकिन बीजेपी को 23 फीसदी सीटें मिली थी। यानी हर चुनाव में मुस्लिम वोटरों के बंटबारे का सीधा फायदा भाजपा के खाते में दिख रहा है। ये बात इस वक्त की सबसे बड़ी और ज्यादा संजीदा है। क्योंकि अब चुनावी समर की रणभेरी बज चुकी है।
फिलहाल चुनावी दंगल का अखाड़ा सज चुका है। सारे महारथी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। जनता के वादे और योजनाओं से रैलियों और रोड़ शो के जरिए रिझाने लुभाने की कोशिशे चल रही हैं। जनता का जनादेश किसका राज तिलक करेगा ये भविष्य के गर्भ में है। लेकिन आंकड़ों पर नजर हर पार्टी के सूरमा की है।
अजस्र पीयूष