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आखिर क्या होती है गोल्ड हॉल मार्किंग, जानिए मार्किंग का पैमाना

आखिर क्या होती है गोल्ड हॉल मार्किंग, जानिए मार्किंग का पैमाना

लखनऊ: सोना अगर खरा न हो तो पूरी मेहनत पर पानी फिर जाता है। आज के जमाने में लोग वित्तीय लेनदेन में ज्यादा किसी पर भरोसा नहीं रखते हैं। विशेषकर सोना खरीदने में ठोक पीटकर व्यापार किया जाता है। गोल्ड हॉल मार्किंग, इसीलिए कई बार बहुत जरूरी हो जाती है।

गुणवत्ता का पैमाना है हॉल मार्किंग

सोने और चांदी के उत्पादों की गुणवत्ता भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित की जाती है। सभी ज्वेलरों के लिए हॉल मार्किंग अनिवार्य है। वह अपने व्यापार में इस्तेमाल होने वाली ज्वेलरी बिना हॉल मार्किंग के नहीं बेच सकते। हालांकि सरकार ने कुछ वाहनों को इस हॉल मार्किंग वाली सुविधा से छूट दी है। ऐसे सभी छोटे व्यापारी जिनका राजस्व ₹40 लाख से कम का होता है, उन्हें भी इस नियम से अलग रखा गया है।

वर्तमान में 30 फ़ीसदी हॉल मार्किंग

भारत सोने का सबसे बड़ा बाजार है, लेकिन इसके बावजूद यहां सिर्फ 30% ज्वेलरी ऐसी है जिस पर हाल मार्किंग हो रही है। 70% पर सिर्फ भरोसे के दम पर व्यापार हो रहा है। इस सुविधा को और बेहतर करने के लिए गोल्ड हॉल मार्किंग को ज्यादा पैमाने पर लागू किया जा रहा है। मौजूदा नियम के अनुसार तीन अलग-अलग प्रकार की ज्वेलरी इसमें रखी गई है। जिसमें 14 कैरेट, 18 कैरेट और 22 कैरेट शामिल हैं। इन्हीं को दुकान पर बेचने के लिए इजाजत दी गई है।

अगर आसान भाषा में समझें तो हॉल मार्किंग से ज्वेलरी की कीमत पर कोई असर नहीं होता। लेकिन यह मुहर लग जाने के बाद उसकी गुणवत्ता प्रमाणित हो जाती हो। कई बार हमारे पास जो गहने होते हैं, उस पर बिना मार्किंग के रहने पर कई सवाल खड़े हो जाते हैं। जबकि हॉल मार्किंग होने पर गुणवत्ता और कीमत दोनों प्रभावित नहीं होती।

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