आनंदपुर साहिब। वाहे गुरू दा खालसा वाहे गुरू दी फतेह से अपने सम्बोधन की शुरूआत कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पंजाब के आनंदपुर साहिब में अपने जनसभा की शुरूआत की इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि हम गुरू गोविन्द साहब की कर्म भूमि आनंदपुर साहिब का नमन करते है। इस समय गुरू गोविन्द साहब के 350 वें जन्मोत्सव को पूरा देश मना रहा है।
हम चाहते है गुरू गोविन्द साहब के सिद्धांतों से हमारे देश की आने वाली पीढ़ी शिक्षा ले युवाओं के लिए गुरू जी का जीवन एक बड़ा आदर्श है। इसलिए हमारी सरकार ने पूरे देश में गुरू गोविन्द साहब के 350 वे प्रकाश पर्व मनाने का निर्णय लिया है। बिहार के पटना साहिब में इस अवसर पर एक बड़ी संगत का आयोजन हो रहा है। जो लोग इस अवसर पर पटना साहिब जाना चाहते हैं, उनके लिए हमारी सरकार ने रेलवे सेबड़ी सुविधा उपलब्ध कराई है।
पंजाब से मेरा बड़ा ही पुराना रिश्ता और लगाव रहा है। यहां पर मुझे कई वर्षों तक काम करने का अवसर मिला जिस वजह से मेरा कई बार आनंद साहिब के दरबार में आना हुए और मथ्था टेकने का अवसर मिला। मेरा ये भी सौभाग्य है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी जी यहां आये थे तो मुझे भी उनके साथ यहां संगत में शामिल होने का सौभाग्य मिला था। प्रधान मंत्री बनने के बाद आज पहली बार और एक पवित्र अवसर इस पवित्र धरती का नमन करने का मुझे सौभाग्य मिला है। इस धरती पर गुरू गोविन्द सिंह जी के 28 सालों तक त्याग, देश भक्ति , धर्म का जो बलिदान देकर पूरे समाज को खड़ा करने का जो भागीरथ प्रयास किया था । मै आज उस धरती को नमन करता हूं।
मेरा पंजाब से खून का रिश्ता है, मेरा जन्म गुजरात में हुआ लेकिन मेरी कर्मभूमि पंजाब रही है। देश की एकता के लिए गुरू गोविंद साहब ने जो पंच प्यारे बनाये थे उसमें एक गुजरात के द्वारिका का था। हिन्दुस्तान की चारों दिशाओं का गुरू जी प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जिसमें एक गुजरात से था, इसलिए मुझे प्रतीत होता है मेरा कोई खून का रिश्ता है। ऐसे बलिदानी परम्परा के प्रवर्तक के जन्मोत्सव के प्रकाश पर्व पर इस धरती को नमन करने का अवसर मिला है।
आज के वर्तमान समय में गुरू जी की एकता का संदेश लेकर पूरे विश्व में फैलाना होगा। क्योंकि इस परम्परा के ने त्याग बलिदान, तप को पूरे विश्व में आने वाली पीढियों का मार्ग दर्शन किया । इसी प्रार्थना के साथ मैं आपके बीच इस संगत में मुझे आने का सौभाग्य व अवसर प्राप्त है। आप सभी का धन्यवाद ‘वाहे गुरू दा खालसा वाहे गुरू दी फतेह ‘