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इगास पर्व: दीपावली के बाद 11वें दिन मनाया जाता है इगास, कुछ ऐसी हैं विशेषताएं

01 11 2018 igaasbagwal01nov18p 18596076 इगास पर्व: दीपावली के बाद 11वें दिन मनाया जाता है इगास, कुछ ऐसी हैं विशेषताएं

उत्तराखंड में आज इगास पर्व की धूम है। राज्य में आज इगास का पर्व मनाया जा रहा है। भैलो और पारंपरिक नृत्य के साथ पहाड़ी व्यंजनों की खुशबू गांव ही नहीं शहरों में भी महकी। इगास का पर्व दीपावली के बाद 11वें दिन को मनाया जाता है।

Igas festival celebrated by people at Dehradun

जानिए, क्यों खास है इगास का पर्व? 

उत्तराखंड में आज इगास पर्व की धूम है। राज्य में आज इगास का पर्व मनाया जा रहा है। भैलो और पारंपरिक नृत्य के साथ पहाड़ी व्यंजनों की खुशबू गांव ही नहीं शहरों में भी महकी। इगास का पर्व दीपावली के बाद 11वें दिन को मनाया जाता है। इगास बग्वाल पर्व उत्तराखंड के बड़े लोक पर्वों में एक है। इस पर्व को दिवाली के 11 दिन बाद दिवाली की तरह ही मनाते हैं।

Igas celebrated after eleven days of deepawali

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है पर्व

लोकपर्व इगास कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन आतिशबाजी करने के बजाय लोग रात को पारंपरिक भैलो खेलते हैं। इस दिन मवेशियों के लिए भात, झंगोरा का पींडू तैयार किया जाता है। उनका तिलक लगाकर फूलों की माला पहनाई जाती है। जब गाय-बैल पींडू खा लेते हैं, तब उनको चराने वाले या गाय-बैलों की सेवा करने वाले बच्चे को पुरस्कार दिया जाता है।

Diwali 2017: उत्तराखंड में एक दीपावली ऐसी भी | DEHRADUN | NYOOOZ HINDI

दीपावली के बाद 11वें दिन मनाई जाती है इगास

आज के दिन घरों में पारंपरिक पकवान पूड़ी, स्वाले, उड़द की दाल की पकोड़ी बनाई जाती है। इस दिन कई लोग तुलसी विवाह भी करते हैं। मान्यता के अनुसार भगवान राम ने जब लंकापति रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या वापसी की तो पूरे देश में तब से दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा ,लेकिन विषम परिस्थितियों के कारण यह समाचार पहाडों में 11 दिन बाद पहुंचा, जिस कारण यहां दीपावली के 11 दिन बाद इगास पर्व को दीपावली के रुप में मनाया जाता है।

Igas festival celebrated in Dehradun

वीर भड़ माधो सिंह के लड़ाई से लौटने की बाद मनाई थी दीपावली

राजशाही दौर में इगास पर्व मनाए जाने की यहां अलग ही कहानी जुड़ी है। कहा जाता है कि 17वीं सदी में जब वीर भड़ माधो सिंह भंडारी तिब्बत की लड़ाई लड़ने गए थे, तब लोगों ने दीपावली नहीं मनाई थी। लेकिन जब वह रण जीतकर लौटे, तो दीयों से पूरे क्षेत्र को रोशन कर इगास का पर्व दीपावली के रूप में मनाया गया। तभी से इगास (बूढ़ी दीपावली) धूमधाम से मनाई जाती है।

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