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नामकरण : ‘रानी दुर्गावती’ के नाम से अब जाना जाएगा बांदा का मेडिकल कॉलेज, जानें कौन है रानी दुर्गावती

rani durgavatii नामकरण : 'रानी दुर्गावती' के नाम से अब जाना जाएगा बांदा का मेडिकल कॉलेज, जानें कौन है रानी दुर्गावती

बांदा राजकीय मेडिकल कॉलेज अब रानी दुर्गावती के नाम से जाना जाएगा। जानकारी को साझा करते हुए मुख्य सचिव, चिकित्सा शिक्षक आलोक कुमार ने बताया है कि प्रदेश सरकार की ओर से बांदा के मेडिकल कॉलेज का नाम ‘रानी दुर्गावती’ के नाम पर करने का फैसला लिया गया है। 

गौरतलब है कि बांदा राजकीय मेडिकल कॉलेज की स्थापना को स्वीकृति बसपा सरकार के दौरान वर्ष 2009 में दी गई थी। जिस पर तात्कालिक मंत्री नसीमुद्दीन सिद्धकी द्वारा मोहर लगाई गई। और वर्ष 2016 में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मेडिकल कॉलेज का लोकार्पण।

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शहर के नूरानी रोड पर स्थित एक भव्य भवन में चल रहे बांदा मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की 400 सीटें स्वीकृत है। वही हाल ही में योगी सरकार ने मेडिकल कॉलेज में एनॉटमी और फिजियोलॉजी में परास्नातक चिकित्सक सेवा कि मात्र 3 सीटों को इजाजत दी है। वही यह मेडिकल कॉलेज लखनऊ में स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध है।

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कौन है रानी दुर्गावती

बाँदा जिले की कालिंजर किले में 1524 ईसवी में दुर्गा अष्टमी के दिन जन्म एक कन्या का नाम दुर्गावती रखा गया। दुर्गावती अपने नाम के अनुरूप दुर्गावती अत्यंत साहसी, शौर्यवान और ऊर्जावान थी। उनकी कीर्तियों की चर्चा चारों ओर फैली हुई थी। इससे प्रभावित होकर गोंडवाना साम्राज्य के महाराज संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपत का विवाह दुर्गावती करा दिया। लेकिन विवाह की 4 वर्ष के उपरांत ही राजा दलपत का निधन हो गया। उस दौरान रानी दुर्गावती की गोद में 3 वर्षीय नारायण थे। अंततः रानी दुर्गावती ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभालने का निर्णय लिया। इसी बीच कई बार मालवा के मुगल शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया लेकिन हर बार वह हार गए।  

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वहीं दूसरी ओर अकबर की भी नजर उनके साम्राज्य पर थी लेकिन रानी दुर्गावती ने अकबर को भी मजबूती से टक्कर दी और मुगल शासकों के दांत खट्टे कर दिए। 

और अंततः 24 जून 1564 में मुगल सेना की हमले की वजह से रानी दुर्गावती ने अपने पुत्र नारायण को किसी सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। और घायल की स्थिति में जब दुर्गावती ने जान लिया कि उनका अंतिम समय निकट है तो उन्होंने खुद अपने पेट में कटार भोंककर आत्म बलिदान दे दिया।

रानी दुर्गावती के सम्मान में कई जगहों का हो चुका है पहले भी नामकरण

  • रानी दुर्गावती के सम्मान में 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय किया गया था।
  • वही 24 जून 1988 में भारत सरकार की ओर से रानी दुर्गावती के बलिदान को बलिदान दिवस के रूप में एक डाक टिकट जारी करते हुए याद किया।
  • साथ ही जबलपुर में स्थित संग्रहालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया है।
  • मंडला जिले में भी रानी दुर्गावती के सम्मान में प्रशासनिक महाविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
  • और अब उत्तर प्रदेश के बांदा मेडिकल कॉलेज का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा जा रहा है।

 

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