Chandrashekhar Azad Birth Anniversary: आजाद एक ऐसा नाम जिससे पूरा अंग्रेजी हुकूमत थरथर कापता था। अपने मूछों पर ताव देते हुए अपनी मातृभूमि के मिट्टी को नमन करते हुए देश के आजादी लिए मुस्कुराते हुए बलिदान देने वाले वीर क्रांतिकारी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद जी के 115 वे जन्मदिन पर कोटि कोटि प्रणाम।
23 जुलाई 1906 मे भाबरा गांव के एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्मे चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। आजाद की मां उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाने के लिए उन्हें बनारस में काशी विद्यापीठ ज्ञान प्राप्ति के लिए भेजा था जहां चंद्रशेखर का मन संस्कृत मे न लग कर देश की आजादी को लेकर आंदोलन में लग गया । आंदोलन के दौरान ही महज 15 वर्ष की उम्र में चंद्रशेखर अंग्रेजों के हाथ गिरफ्तार हो गए । गिरफ्तारी के बाद जब मजिस्ट्रेट के सामने चंद्रशेखर उपस्थित हुए तो उन्होंने अपना नाम आजाद और अपने पिताजी का नाम स्वतंत्रता और पता जेल बताया उस दिन के बाद से चंद्रशेखर तिवारी चंद्रशेखर आजाद के नाम से प्रसिद्ध हो गए ।
चौरी चौरा कांड
फरवरी 1922 में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस ने चौरी चौरा में गोली बरसाई थी l जिसके जवाब में क्रांतिकारियों द्वारा थाने पर हमला करके पूरे थाने सहित 22 पुलिस वालों को भी जिंदा जला दिया गया था जिसके बाद गांधीजी बिना किसी सदस्य से बात किए 1922 में अचानक से असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया जिसके बाद चंद्रशेखर आजाद अपनी विचारधाराओं को बदलकर क्रांतिकारी समूह से जुड़कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये l और इस दौरान राम प्रसाद बिस्मिल और भगत सिंह जैसे वीर क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजों को धूल चटाते हुए आजादी की क्रांति को नया स्वरूप दिया और वीरता की नई परिभाषा लिखी।
काकोरी कांड और असेंबली बम कांड
आजाद ने पहली बार 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम देते हुए वहां से फरार होने में सफल हुए थे। 1927 में बिस्मिल के साथ चार साथियों को फांसी की सजा होने के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को जोड़ते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में जाकर सॉण्डर्स की हत्या करके लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया।
इसी बीच दिल्ली पहुंचकर आजाद ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के मदद से 8 अप्रैल 1929 में केंद्रीय असेंबली बम कांड जैसा एक और घटना को अंजाम दिया जिससे पूरा अंग्रेजी हुकूमत हिल गया l दरअसल यह बम कांड अंग्रेजों द्वारा लाए गए काले कानून के विरोध में किया गया था। कहा जाता हैं कि आजाद से भयभीत ब्रिटिश हुकूमत उन्हें पहचानने के लिए 700 लोगों को नौकरी पर रखा था।
कुछ दिन के लिए आजाद का गढ़ था झांसी
अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए अपने समूह के लोगों को मजबूत करने के लिए युद्ध नीति और निशानेबाजी को सिखाने के लिए चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बनाया था जहां आजाद झांसी से 15 किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में अपने क्रांतिकारि साथियों को निशानेबाजी का निरंतर अभ्यास कराते थे ।
‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” का नाम बदलकर “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” रखा गया
अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई को नया स्वरूप देने के लिए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन दल का गठन करते हुए चंद्रशेखर आजाद कमांडर इन चीफ का दायित्व संभाला और इस दौरान उन्होंने एक नया लक्ष्य रखते हुए लड़ाई का आगाज किया था।
” हमारी लड़ाई आखिरी फैसला होने तक जारी रहेगी और वह फैसला है जीत या मौत”
औरतों के प्रति था सम्मान
कहा जाता है कि आजाद जिस संगठन से जुड़े थे वह संगठन धन इकट्ठा करने के लिए बिस्मिल के नेतृत्व में एक दिन गांव के अमीर घरों पर डकैती डालने के लिए धावा बोले तो डकैती के दौरान एक औरत आजाद का पिस्टल उनसे छीन लिया शरीर से हट्टे-कट्टे होने के बावजूद भी आजाद अपने वसूलू पर खरे उतरे और उस औरत पर अपना हाथ नहीं उठाए बल्कि औरत के सम्मुख आदर भाव से खड़े रहे जिसे देख बिस्मिल घर के अंदर घुसकर औरत को चांटा मारते हुए उसके हाथ से पिस्टल छीन कर आजाद को डांटते हुए घर से बाहर खींच कर ले गए थे ।
गणेश शंकर विद्यार्थी के सुझाव के बाद जवाहरलाल नेहरू से मिलने गए थे आजाद
केंद्रीय असेंबली बम कांड के आरोप में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी का सजा सुनाए जाने पर आजाद ने क्रांतिकारियों की सजा कम कराने के प्रयास में उत्तर प्रदेश की हरदोई जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले। इस मसले पर परामर्श कर वे 20 फरवरी को जवाहरलाल नेहरू से इलाहाबाद में उनके निवास आनन्द भवन मैं मुलाकात कर आग्रह किया कि वो गांधी जी से लॉर्ड इरविन पर इन तीनों क्रांतिकारियों पर फांसी की सजा के बदले उम्र कैद में बदलवाने का जोर डालें।
27 फरवरी 1931 का दिन
इस दिन आजाद अल्फ्रेड पार्क ( शहीद चंद्रशेखर आजाद पर) मे अपने मित्र सुखदेव राज से अपने विचारों का साझा कर रहे थे। कि कुछ गद्दारों ने उनके यहां होने की खबर अंग्रेजी हुकूमत को दे दिया । जिसके बाद सीआईडी का एसएसपी नाट बाबर कर्नलगंज थाने से भारी संख्या में पुलिस लेकर पूरे अल्फ्रेड पार्क को घेर लिया l इसके बावजूद भी आजाद बिना घबराए अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए l अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अंग्रेजों के हाथ ना लगे इसे लेकर आजाद अपने पास आखरी गोली बचा कर रखे थे जिसे अंत में उन्होंने हंसते हुए अपने मूछों पर ताव देते हुए इलाहाबाद के मातृभूमि के मिट्टी को सलाम करते हुए गोली को अपने अंदर उतार लिया।
आजाद का बलिदान लोगों में लाया आक्रोश
आजाद के बलिदान की खबर जैसे ही लोगों तक पहुंची पूरा इलाहाबाद अपने आंखों में आंसू भरे आक्रोशित होकर अल्फ्रेड पार्क में इकट्ठा हो गए जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे उस स्थान को पूज्यते हुए शहर के हजारों लोगों ने उनसे प्रेरणा लेते हुए शाम होते-होते आंदोलन को और तेज करने के लिए कूद पड़े सड़कों पर उतर कर अंग्रेजो के खिलाफ बगावत करना शुरू कर दिया। अंततः आजाद का बलिदान खाली नहीं गया और 15 अगस्त 1947 में भारत आजाद हो गया।