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1857 के विद्रोह की लपटें जब कानपुर पहुंचीं, तो तात्या टोपे ने कानपुर में स्वाधीनता स्थापित करने में अगुवाई की

तात्या टोपे ने किया था कानपुर में 1857 की क्रांति का नेतृत्व 1857 के विद्रोह की लपटें जब कानपुर पहुंचीं, तो तात्या टोपे ने कानपुर में स्वाधीनता स्थापित करने में अगुवाई की

सन 1857 के विद्रोह की लपटें जब कानपुर पहुंचीं और वहां के सैनिकों ने नाना साहब को पेशवा और अपना नेता घोषित किया। तो तात्या टोपे ने कानपुर में स्वाधीनता स्थापित करने में अगुवाई की। तात्या टोपे को नाना साहब ने अपना सैनिक सलाहकार नियुक्त किया।जब ब्रिगेडियर जनरल हैवलॉक की कमान में अंग्रेज सेना ने इलाहाबाद की ओर से कानपुर पर हमला किया। तब तात्या ने कानपुर की सुरक्षा में अपना जी-जान लगा दिया, परंतु 16 जुलाई 1857 को उसकी पराजय हो गयी। कानपुर छोड देना पडा।

 

तात्या टोपे ने किया था कानपुर में 1857 की क्रांति का नेतृत्व 1857 के विद्रोह की लपटें जब कानपुर पहुंचीं, तो तात्या टोपे ने कानपुर में स्वाधीनता स्थापित करने में अगुवाई की

 

तात्या टोपे ने अपनी सेनाओं का पुनर्गठन किया। और कानपुर से बारह मील उत्तर मे बिठूर पहुँच गये। यहां से कानपुर पर हमले का मौका खोजने लगे। इस बीच हैवलॉक ने अचानक ही बिठूर पर आक्रमण कर दिया। यद्यपि तात्या बिठूर की लडाई में पराजित हो गये परंतु उनकी कमान में भारतीय सैनिकों ने इतनी बहादुरी प्रदर्शित की कि अंग्रेज सेनापति को भी प्रशंसा करनी पडी।

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पराजय से विचलित न होते हुए वे बिठूर से राव साहेब सिंधिया के इलाके में पहुंचे

तात्या एक बेजोड सेनापति थे। पराजय से विचलित न होते हुए वे बिठूर से राव साहेब सिंधिया के इलाके में पहुंचे। वहां वे ग्वालियर कन्टिजेन्ट नाम की प्रसिद्ध सैनिक टुकडी को अपनी ओर मिलाने में सफल हो गये। वहां से वे एक बडी सेना के साथ काल्पी पहुंचे। नवंबर 1857  में उन्होंने कानपुर पर आक्रमण किया। मेजर जनरल विन्ढल के कमान में कानपुर की सुरक्षा के लिए स्थित अंग्रेज सेना तितर-बितर होकर भागी, परंतु यह जीत थोडे समय के लिए थी। ब्रिटिश सेना के प्रधान सेनापति सर कॉलिन कैम्पबेल ने तात्या को छह दिसंबर को पराजित कर दिया।

खारी में उन्होंने अनेक तोपें और तीन लाख रुपये प्राप्त किए जो सेना के लिए जरूरी थे

इसलिए तात्या टोपे खारी चले गये और वहां नगर पर कब्जा कर लिया। खारी में उन्होंने अनेक तोपें और तीन लाख रुपये प्राप्त किए जो सेना के लिए जरूरी थे। इसी बीच २२ मार्च को सर ह्यूरोज ने झांसी पर घेरा डाला।ऐसे नाजुक समय में तात्या टोपे करीब २०,००० सैनिकों के साथ रानी लक्ष्मी बाई की मदद के लिए पहुंचे। ब्रिटिश सेना तात्या टोपे और रानी की सेना से घिर गयी। अंततः रानी की विजय हुई। रानी और तात्या टोपे इसके बाद काल्पी पहुंचे। इस युद्ध में तात्या टोपे को एक बार फिर ह्यूरोज के खिलाफ हार का मुंह देखना पडा।

चरखारी को छोडकर दुर्भाग्य से अन्य स्थानों पर उनकी पराजय हो गयी

कानपुर, चरखारी, झांसी और कोंच की लडाइयों की कमान तात्या टोपे के हाथ में थी। चरखारी को छोडकर दुर्भाग्य से अन्य स्थानों पर उनकी पराजय हो गयी। तात्या टोपे अत्यंत योग्य सेनापति थे। कोंच की पराजय के बाद उन्हें यह समझते देर न लगी कि यदि कोई नया और जोरदार कदम नहीं उठाया गया तो स्वाधीनता सेनानियों की पराजय हो जायेगी।इसलिए तात्या ने काल्पी की सुरक्षा का भार झांसी की रानी और अपने अन्य सहयोगियों पर छोड दिया और वे स्वयं वेश बदलकर ग्वालियर चले गये। जब ह्यूरोज काल्पी की विजय का जश्न मना रहा था, तब तात्या ने एक ऐसी विलक्षण सफलता प्राप्त की जिससे ह्यूरोज अचंभे में पड गया। तात्या का जवाबी हमला अविश्वसनीय था।

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जीत के ढंके बजाते हुए ग्वालियर में प्रवेश किया और नाना साहब को पेशवा घोशित किया

महाराजा जयाजी राव सिंधिया की फौज को अपनी ओर मिला लिया था ।और ग्वालियर के प्रसिद्ध किले पर कब्जा कर लिया था। झांसी की रानी, तात्या और राव साहब ने जीत के ढंके बजाते हुए ग्वालियर में प्रवेश किया और नाना साहब को पेशवा घोशित किया। इस रोमांचकारी सफलता ने स्वाधीनता सेनानियों के दिलों को खुशी से भर दिया, परंतु इसके पहले कि तात्या टोपे अपनी शक्ति को संगठित करते, ह्यूरोज ने आक्रमण कर दिया। फूलबाग के पास हुए युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई 18 जून,1857 को शहीद हो गयीं।

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