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लोकसभा इलेक्शन का UK में भी पड़ेगा असर, देखेंगे क्या है यहां माहौल?

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एजेंसी, देहरादून। उत्तराखंड में दो ही प्रमुख पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस का राज्यभर में व्यापक प्रभाव है। राज्य गठन के बाद से अब तक हुए तीन लोकसभा चुनावों में अमूमन इन्हीं दोनों पार्टियों के मध्य मुख्य मुकाबला होता आया है। केवल वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी एक लोकसभा सीट हरिद्वार जीतने में सफल रही, इसे अपवाद कहा जा सकता है। तब बीजेपी को तीन, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को एक-एक सीट पर जीत मिली। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में पांचों सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक से बीजेपी ने राज्य की पांचों सीटों पर परचम फहराया। इसके तीन वर्ष बाद वर्ष 2017 की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने सत्तारूढ़ कांग्रेस को बुरी तरह परास्त कर दिया। 70 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी तीन-चौथाई से ज्यादा बहुमत के साथ 57 सीटों पर काबिज हुई, जबकि उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को महज 11 सीटों पर सिमटना पड़ा। हालात यहां तक आ पहुंचे कि तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी दोनों सीटें हार गए। यानी, पिछले पांच सालों के दौरान बीजेपी उत्तराखंड में अजेय स्थिति में बनी हुई है।

वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में अंतिम चरण में मतदान हुआ था, लेकिन इस बार पहले ही चरण में यहां मतदान रखा गया है। इस चुनाव में राज्य एवं केन्द्र में सत्तारुढ़ बीजेपी के समक्ष अपनी साख बचाए रखने की सबसे बड़ी चुनौती भी है। जबकि कांग्रेस के सामने यह एक ऐसा अवसर है, जिससे वह अपनी पिछली दो पराजयों का बदला ले सके ।

उत्तराखंड राज्य के चुनावी परिदृश्य पर यदि नजर डालें तो राज्य में युवा और सैनिक और पूर्व सैनिक मतदाताओं को गेम चेंजर माना जा सकता है। इस बार युवा मतदाताओं की संख्या 21,20,218 है। यह कुल मतदाताओं का 27.54 फीसदी है। हरिद्वार जिले में सबसे ज्यादा युवा मतदाता हैं। अब प्रदेश में सभी दलों की नजर युवा मतदाताओं पर टिक गई है। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्य में 18 से 29 आयुवर्ग के मतदाताओं की कुल संख्या 21,20,218 है। हरिद्वार जिले में 4,21,365 युवा मतदाता हैं। उत्तरकाशी जिले में 70217 युवा मतदाता हैं।

पिथौरागढ़ में 94230, चमोली में 78806, रुद्रप्रयाग में 49369, टिहरी में 130452, देहरादून जिले में 331260, बागेश्वर में 50675, पौड़ी में 139332, नैनीताल में 194337, अल्मोड़ा में 128320, ऊधमसिंह नगर में 378519 और चंपावत जिले में 53196 युवा मतदाता हैं। इन युवा मतदाताओं में रोज़गार की समस्या एक मुद्दा जरुर बन सकती है, लेकिन बीजेपी और इसके अनुषांगिक संगठन इनके बीच लगातार सक्रिय है, जबकि कांग्रेस की सक्रियता उतनी नहीं दिखती। राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या 76,98,293 हैं।

उत्तराखंड एक सैन्य बहुल प्रदेश भी माना जाता है। पर्वतीय जिलों में हर दूसरे परिवार से कम से कम एक व्यक्ति सेना अथवा अर्द्धसैनिक बल में तैनात है। प्रदेश में इस समय तकरीबन एक लाख सर्विस वोटर हैं। हालांकि, इनकी संख्या घट-बढ़ती रहती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय सेना में डेढ़ से पौने दो लाख सैनिक उत्तराखंड से हैं। प्रदेश में पंजीकृत पूर्व सैनिक तथा वीर नारियों की संख्या पर नजर डालें तो यह संख्या भी 1.62 लाख से उपर है।

इसके अलावा पचास हजार से अधिक युवा अर्द्धसैनिक बलों में तैनात हैं। तकरीबन तीस हजार सेवानिवृत्त अर्द्धसैनिक हैं। इस तरह सैनिक और पूर्व सैनिक परिवारों की राज्य में खासी संख्या है। इनके परिजनों की संख्या लगभग अठारह लाख तक होने का अनुमान है। इसी के चलते इन पर सभी कीव नजर रहती है। सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े वोटरों के गणित पर सभी राजनीतिक दल पूर्व सैनिकों पर अपनी नजरें जमाए रखते हैं। हर दल में पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ है। इनमें बिग्रेडियर स्तर के अधिकारियों तक को शामिल किया गया है। राजनीतिक दल पूर्व सैनिकों से जुड़े मुद्दे ही उठाते हैं। हालांकि, सैनिक पृष्ठभूमि से जुड़े वोटरों के मूड को भांपना किसी दल के लिए आसान नहीं होता।

प्रदेश में अभी तक हुए चुनावों में पूर्व सैनिकों के मत व्यवहार पर नजर डालें तो ये वोटर मुख्य रूप से केंद्रीय मुद्दों के आधार पर ही वोटिंग करते हैं। मसलन, राष्ट्रीय सुरक्षा और सैनिक हितों से जुड़े मुद्दे सीधे इनके वोट करने के तरीके में नजर आते हैं। चुनाव घोषणा से ठीक पूर्व इसी को ध्यान में रखते हुए देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने देहरादून में 4 मार्च को सैनिक वीरांगनाओं को सम्मानित करने के दौरान सार्वजनिक रूप से उनके पांव छुए जिसको लेकर सैनिक परिवारों में एक सन्देश देने की कोशिश की गयी कि बीजेपी उनका कितना ख्याल रखती है। शौर्य सम्मान समारोह में रक्षा मंत्री ने कहा कि अब तक वन रैंक-वन पेंशन में 35 हजार करोड़ रूपए की राशि दी जा चुकी है। इस समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत , डीजीएमओ अनिल भट्ट तथा रॉ प्रमुख अनिल धस्माना उत्तराखंड से हैं। इसका भी राजनैतिक लाभ बीजेपी लेने का प्रयास करती है। वन रैंक-वन पेंशन के लिए केंद्र की गई पहल को भी बीजेपी अपनी उपलब्धि के रूप में गिनाकर पूर्व और वर्तमान सैनिको को लुभाती रही है।

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