नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पितरों का काफी महत्व होता है। जिसके लिए उनका देहान्त के बाद तर्पण किया जाता है। आज से 15 दिन केवल श्राद्ध कर्म करने के लिए जाने जाते हैं। हिन्दू धर्म में भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक के 15 दिन केवल श्राद्ध कर्म करने के लिए जाने जाते हैं। इस समय को पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है। इस बार 24 सितंबर के दिन से श्राद्ध लग रहें है जो 8 अक्टूबर के दिन तक रहेंगें। श्राद्ध पक्ष के लिए ऐसी मान्यता है कि इनदिनों में परिवार के जिस सदस्य का देहान्त हो गया है उसके निमित्त तर्पण किया जाता है।
जिससे पितर देवता प्रसन्न होते है और अपना आशीर्वाद अपने परिवार वालों को देते हैं। हम में से लगभग सभी लोगों ने श्राद्ध के बारे में सुना तो होगा लेकिन हम में से कई लोग श्राद्ध किसे कहते हैं ये नहीं जानते आइए जानते हैं।
श्राद्ध का मतलब
श्राद्ध का मतलब होता है श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करना अपने पितरों को याद करना। शास्त्रों के अनुसार अगर घर का कोई सदस्य अपने शरीर को छोड़ कर चला गया है तो उसकी आत्मा की तृप्ति और उसकी प्रसन्नता के लिए श्रद्धा पूर्वक संकल्प करना और पितरों के निम्मित तर्पण करना श्राद्ध कह लाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि श्राद्धपक्ष में यमराज जीव को मुक्त करते हैं, जिससे वे अपने स्वजनों के पास जा कर तर्पण और पिड़ ग्रहण कर सकें।
परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होने के बाद उसे पितर कहा जाता है। परिवार का विवाहित या अविवाहित सदस्य, बच्चा या बुजुर्ग, स्त्री या पुरुष जिनकी मृत्यु हो चुकी है सब मृत्यु के बाद पितर कहलाते है।