नई दिल्ली। रूस और सउदी अरब जो कि विश्व के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश माने जाते हैं अब वो कटौती के समझौते को आगे बढ़ाने को लेकर विचार कर रहे हैं। ऐसा इस महीने तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक की होने वाली बैठक को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है। दोनों देशों का कहना है कि सतत विकास, पूर्वानुमान और बाजार स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए तेल उत्पादक देशों की प्रतिबद्धता को रेखांकित करना होगा। इसके लिए सहयोगी उत्पादकों को अपने उत्पादन कटौती समझौते को और नौ महीने का विस्तार देकर इसे 31 मार्च 2018 तक बढ़ा देना चाहिए।
बता दें कि बयान के मुताबिक रूस के उर्जा मंत्री एलेक्जेंडर नोवक और उनके सउदी समकक्ष खालिद अल-फालिह ने बीजिंग में मुलाकात की और इस बात पर राजी हुए कि बाजार को स्थिर करने के लक्ष्य को पाने के लिए जो भी करना पड़े करेंगे और तेल उत्पादन में कटौती कर पांच साल के औसत स्तर पर लाएंगे। बयान में कहा गया है कि मंत्री अन्य तेल उत्पादक देशों से इस संबंध में चर्चा करेंगे।
क्रूड ऑयल की कीमत गिरने से एशियाई देशों को मिलता है फायदा
2014 में ग्लोबल मार्केट में क्रूड की सप्लाई तेज होने, जियो-पोलिटिकल तनाव और अमेरिका मे शेल गैस क्रांति के साथ मजबूत होते डॉलर इंडेक्स से क्रूड की कीमतों में तेज गिरावट देखने को मिली थी। उस वक्त अमेरिका 8.6 मिलियन बैरल और साउदी अरब 9.7 मिलियन बैरल क्रूड प्रोडक्शन कर रहा था। वहीं रूस 10.5 मिलियन बैरल का अकेले प्रोडक्शन कर रहा था।
क्रूड को महंगा करने के लिए रूस और सऊदी चल रहा चाल
बीते 3 साल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था को सस्ते क्रूड से बड़ी राहत मिली तो अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में इजाफे से सरकार की चुनौतियों में भी इजाफा होना तय है। रूस और साउदी अरब के फैसले से ओपेक देश कच्चे तेल की सप्लाई को कम करने का फैसला करते हैं तो इसका सीधा असर एक बार फिर भारत पर पड़ेगा, हालांकि इस बार यह राहत की जगह चुनौतियों को बढ़ाने वाला होगा।