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पंजाब में कौन जितेगा चुनाव, किसानों की राजनीति में एंट्री बड़ी चुनौती, 77 सीटों पर किसानों का दबदबा

DFASDF पंजाब में कौन जितेगा चुनाव, किसानों की राजनीति में एंट्री बड़ी चुनौती, 77 सीटों पर किसानों का दबदबा

पंजाब विधानसभा चुनावों का एलान हो गया है। पंजाब में 14 फरवरी को मतदान होना है। ऐसे में अब ये जानना जरूरी हो जाता है कि पंजाब चुनाव में किसके सिर सजेगा ताज और कौन विपक्ष की कुर्सी पर होगा विराजमान।

पंजाब में 14 फरवरी को मतदान

पंजाब विधानसभा चुनावों का एलान हो गया है। पंजाब में 14 फरवरी को मतदान होना है। ऐसे में अब ये जानना जरूरी हो जाता है कि पंजाब चुनाव में किसके सिर सजेगा ताज और कौन विपक्ष की कुर्सी पर होगा विराजमान। दरअसल पंजाब में इस बार किसान भी राजनीतिक पिच पर हैं। ऐसे में तमाम राजनीतिक दलों की चुनौती और ज्यादा बढ़ गई है। किसान आंदोलन के दौरान उभरे किसान नेताओं ने अपनी एक अलग पार्टी बना ली है। पंजाब की 177 विधानसभा सीटों में से 77 सीटों पर किसान वोट बैंक प्रभावी है। ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए राह कितनी मुश्किल होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

22 संगठनों ने संयुक्त समाज मोर्चा बनाया

किसान आंदोलन की सफलता के बाद 22 संगठनों ने संयुक्त समाज मोर्चा बनाया है। जिसके जरिए वह 117 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। पंजाब में कुल 117 विधानसभा सीटों में 40 अर्बन, 51 सेमी अर्बन और 26 पूरी तरह से अर्बन सीटे हैं। सिर्फ 40 सीटें ही ऐसी हैं, जहां शहरी वर्ग का ज्यादा वोट बैंक है। बाकी 77 सीटों पर ग्रामीण या सीधे तौर पर किसान वोट बैंक का दबदबा है। पंजाब की 75% आबादी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि से जुड़ी है। प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े लोगों की बात करें तो इसमें किसान, उनके खेतों में काम करने वाले मजदूर, उनसे फसल खरीदने वाले आढ़ती और खाद-कीटनाशक के व्यापारी शामिल हैं। खेती के जरिए यह सभी लोग एक-दूसरे से सीधे जुड़े हुए हैं।

माझा, मालवा और दोआबा में बंटा पंजाब

पंजाब माझा, मालवा और दोआबा यानी तीन हिस्सों में बंटा है। मालवा में 69, माझा में 25 और दोआबा में 23 सीटें हैं। सबसे ज्यादा सीटों वाले मालवा एरिया किसानों का गढ़ है। पंजाब के चुनाव में यही इलाका निर्णायक भूमिका निभाता है। किसानों के दबदबे वाली प्रदेश में 77 सीटों में सभी ग्रामीण या शहरी-ग्रामीण हिस्से वाली हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि पंजाब में किसान राजनीतिक किंग या फिर किंग मेकर बनेंगे।  यहां किसान का वोट ही हार-जीत का फैसला करता है।

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