राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज केन्द्रीय वित्त और कॉरपोरेट कार्य मंत्री अरुण जेटली से ‘मेकिंग ऑफ न्यू इंडियाः ट्रांसर्फोमेशन अंडर मोदी गवर्न्मेंट’ पुस्तक की पहली प्रति प्राप्त की। जेटली ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में इस पुस्तक का औपचारिक रूप से विमोचन किया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि समसामयिक शासन ने ‘नये भारत’ के समावेशी विचार को मूर्त रूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
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राष्ट्रपति ने कहा कि समावेशन नारा मात्र नहीं है। सरकार ने इस सिद्धांत को नीति निर्माण के केन्द्र में रखा है। उन्होंने कहा कि ऐसे सामाजिक-आर्थिक समूहों को समग्र ढंग से मुख्य धारा में लाने के लिए असंख्य उपाय किए गए हैं, जो अभी तक भारत की विकास गाथा में पिछड़े हुए थे।राष्ट्रपति ने कहा कि यह कहना गलत है कि विकास की यात्रा में सिर्फ सरकार आगे बढ़ रही है।उन्होंने कहा कि जिस उत्साह के साथ आम नागरिकों ने योगदान किया है, उसे भी समझने की आवश्यकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि ‘मेकिंग ऑफ न्यू इंडिया’ पुस्तक में विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों का समग्र मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है। कोविंद ने कहा कि पुस्तक से पाठकों को राष्ट्रीय विकास की यात्रा के विभिन्न आयामों को समझने में मदद मिलेगी।यह पुस्तक डॉक्टर बिबेक देबरॉय, डॉक्टर अर्निबान गांगूली और किशोर देसाई ने संपादित की है। इसमें अर्थव्यवस्था से लेकर कूटनीति, शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य तक विभिन्न विषयों पर 51 निबंध शामिल किए गए हैं।
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आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव से करीब 6 महीने पहले सरकार और मोदी की छवि चमकाने वाली किताब ‘मेकिंग ऑफ न्यू इंडियाः ट्रांसर्फोमेशन अंडर मोदी गवर्न्मेंट” लॉन्च की हैं। माना जा रहा है कि मोदी इसके जरिए बीजेपी 2019 के आम चुनाव में मोदी की छवि का लाभ उठाएगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशासनिक कार्यशैली के साथ ही डोकलाम क्राइसिस, डीमॉनेटाइजेशन और तीन तलाक के खिलाफ अध्यादेश से जुड़ी उनकी नीतियों के बारे में बताने और उसे सही ठहराने वाली किताब की लॉन्चिंग का इससे बढ़िया मौका क्या हो सकता है।
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मेकिंग ऑफ न्यू इंडिया’ को वित्त मंत्री अरुण जेटली मंगलवार को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मौजूदगी में रिलीज किया जाएगा। इस किताब को नेशनलिस्ट थिंक टैंक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन (एसपीएमआरएफ) और नीति आयोग के सदस्यों ने मिलकर तैयार किया है। इसे 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पूरी क्षमता और उत्तरदायित्व के साथ काम करने वाले पॉलिसीमेकर के तौर पर मोदी की छवि का लाभ लेने के रूप में देखा जा रहा है।