पूर्णिमा के दिन ज्यादा नहाने से प्रभु जगन्नाथ और बलभद्र व सुभद्रा प्रभु बिमार हो गए हैं। जिसके बाद तीनों का विगत 5 जून से इलाज किया जा रहा है।
नई दिल्ली: पूर्णिमा के दिन ज्यादा नहाने से प्रभु जगन्नाथ और बलभद्र व सुभद्रा प्रभु बिमार हो गए हैं। जिसके बाद तीनों का विगत 5 जून से इलाज किया जा रहा है। मंगलवार को 10 जंगली जड़ी-बुटियों से दवा को तैयार किया गया और उनको खिलाया गया है। इस दवा में कृष्ण परणी, शाला परणी, बेल, गम्हारी, अगीबथु, लबिग कोली, अंकरांती, तिगोखरा, फणफणा, सुनारी, वृहती, पाटेली के औषाधिय हिस्सों को मिला कर तैयार किया जाता है।
बता दें कि इन जड़ी-बुटियों का आयुर्वेद में भी खास जिक्र किया गया है। परंपरा के अनुसार इस दवा को खाने के दो तीन बाद प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा स्वस्थ्य होते है। प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा को दशमूली दबा पिलाने के पश्चात भक्तों में भी इसे प्रसाद के रुप में वितरण किया गया। क्षेत्र में मान्यता है कि इस दबा के पिने से लोग एक साल तक रोग-व्याधी से दूर रहते है।
साथ ही मान्यता है कि दबा खाने के बाद प्रभु जगन्नाथ भाई-बहन के साथ स्वास्थ्य होते है। इसके पश्चात नेत्र उत्सव पर भगवान जगन्नाथ भक्तों को दर्शन देंगे। 21 जून को नेत्र उत्सव पर भगवान जगन्नाथ के नव यौवन रुप के दर्शन होंगे। 23 जून को रथ यात्रा है। कोरोना के कारण इस वर्ष रथ मेला का आयोजन नहीं होगा। सरकार की ओर से रथ यात्रा के आयोजन को लेकर अभी तक किसी तरह का निर्देश नहीं मिला है। कोरोना के कारण रथ यात्रा में इस वर्ष सिर्फ रश्म अदायगी होने की ही संभावना है।
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वहीं सरायकेला खरसावां जिला में बडे पैमाने प्रभु जगन्नाथ के रथा यत्रा का आयोजन होता है। जगत के पालनहार प्रभु जगन्नाथ के द्वादश यात्राओं में वार्षिक रथ यात्रा सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। जिला के सरायकेला, खरसावां, हरिभंजा, सीनी, चांडिल, गम्हरिया, दलाईकेला, संतारी, जोजोकुडमा, बंदोलोहर, चाकडी, पोटोबेडा आदी जगहों पर रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। सरायकेला व खरसावां में रथ यात्रा का आयोजन राजा-राजवाडे के जमाने से होती आ रही है। सरायकेला व खरसावां में 17 वीं सदी से रथ यात्र का आयोजन होने की बात कही जाती है।