नई दिल्ली। इलाहाबाद गंगा-यमुना और विलुप्त सरस्वती के संगम और त्रिवेणी तट पर 12 वर्षों में लगने वाले महाकुंभ की वजह से पूरे देश में जाना जाता है इसके अलावा इलाहाबाद को आनंद भवन की वजह से भी जाना जाता है जो कि स्वतंत्रता संग्राम में कई आंदोलनों का साक्षी रहा है।
आनंद भवन इलाहाबाद का एक ऐतिहासिक भवन संग्रहालय है जो नेहरू परिवार का हुआ करता था। इसका निर्माण मोतीलाल नेहरू जी द्वारा वर्ष 1930 में कराया गया था जो नेहरू परिवार के निवास स्थान की तरह उपयोग होता था। परंतु बाद में इसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा उनके स्थानीय मुख्यालय यानी स्वराज भवन में परिवर्तित कर दिया गया। इसमें जवाहर नक्षत्रशाला भी स्थित है।
भारत छोड़ो आंदोलन
देश की आज़ादी से पहले आनंद भवन कांग्रेस मुख्यालय के रूप में रहा और उससे भी पहले राजनीतिक सरगर्मियों का केंद्र रहा। पंडित नेहरू ने 1928 में पहली बार यहीं ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ की घोषणा करने वाला भाषण लिखा। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का प्रारूप यहीं पर बना। यही नहीं तमाम ऐतिहासिक फ़ैसले या उनकी रूपरेखा यहाँ पर ही बनी। 1857 के प्रथम विद्रोह में वफ़ादारी के लिए स्थानीय ब्रिटिश प्रशासन ने शेख़ फ़ैय्याज़ अली को 19 बीघा भूमि का पट्टा दिया जिसपर उन्होंने बंगला बनवाया।
नेहरू जी जब 10 वर्ष के थे, तब आनंद भवन ख़रीदा गया और पूरा परिवार यहाँ आया। शहर के पुराने नक्शे में अब मीरगंज का वह मकान नहीं बचा क्योंकि 1931 में सफायी अभियान के तहत नगर पालिका ने उसे गिरा दिया था। ‘मेरी कहानी’ में नेहरू जी ने लिखा है कि ‘कड़ी मेहनत और लगन से वकालत करने का परिणाम यह हुआ कि मुक़दमें धड़ाधड़ आने लगे और ख़ूब रूपया कमाया।’
आनंद भवन बना स्वराज भवन
मोतीलाल जी ने आनंद भवन में और निर्माण कराया। आनंद भवन 1930 में स्वराज भवन बना दिया गया और नेहरू परिवार नए भवन यानी आनंद भवन में आ गया। अब स्वराज भवन कांग्रेस का घोषित दफ़्तर बन गया। फिलहाल 1971 में आनंद भवन को एक स्मारक संग्रहालय के रूप में दर्शकों के लिए खोल दिया गया।
आनंद भवन स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो चुका है। नेहरू परिवार आज भी इंदिरा गाँधी की कड़ी में गाँधी परिवार के नाम पर चल रहा है। समय का चक्र इतिहास बना रहा है। गाँधी परिवार आज भी उसका एक नायक है, लेकिन इलाहाबाद कहीं नींव का पत्थर भर रह गया है। आनंद भवन और उसके बगल में स्थित स्वराज भवन आज ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विख्यात है। यहाँ आने वाले पर्यटक संगम पर पुण्य कमाने के बाद स्वतंत्रता संग्राम के इस मंदिर में आकर राष्ट्रनायकों के चिन्हों, उनकी स्मृतियों को श्रद्धा से देखते हैं और पूरे भवन व परिसर में कुछ तलाशते फिरते हैं।
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