देश की सर्वोच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया पर फेक न्यूज को लेकर सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांप्रदायिक रंग वाली ऐसी खबरों से देश का नाम खराब होता है।
फेक न्यूज पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सोशल मीडिया पर आजकल फेक न्यूज और खबरों को सांप्रदायिक रंग देने के सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट ने भी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर सांप्रदायिक रंग वाले ऐसी खबरों को लेकर सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने फेक न्यूज के चलन पर चिंता जाहिर की है। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि कई बार ऐसे मीडिया प्लैटफॉर्म पर सांप्रदायिक रंग वाले ऐसे न्यूज फैलाए जाते हैं जिससे देश का नाम खराब होता है।
‘सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म सिर्फ रसूखदारों की सुनते हैं’
सुप्रीम कोर्ट में निजामुद्दीन मरकज की तबलीगी जमात वाली घटना के दौरान फर्जी और प्रेरित खबरों के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद और पीस पार्टी की याचिका पर सुनवाई हो रही थी। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने फेक न्यूज को लेकर टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के डिजिटल प्लैटफॉर्म और सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म सिर्फ रसूखदारों की सुनते हैं और उनका तो जूडिशल संस्थानों के प्रति कोई उत्तरदायित्व भी नहीं होता है। चीफ जस्टिस ने टिप्पणी करते हुए कहा कि मैने कभी पब्लिक चैनल, टि्वटर, फेसबुक और यूट्यूब को जवाब देते नहीं देखा और संस्थानों के प्रति इनकी कोई जिम्मेदारी नहीं दिखती।
हर खबर को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया कि हर खबर में न्यूज को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश रहती है और यही सबसे बड़ी समस्या है। अगर कुछ गलत लिखते हैं तो भी पब्लिक चैनल, टि्वटर, फेसबुक और यूट्यूब कोई जवाब नहीं देते। वहीं इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि नई आईटी रूल्स सोशल और डिजिटल मीडिया को रेग्युलेट करने के लिए बनाया गया है और रेग्युलेट करने का प्रयास किया गया है। जो मुद्दे बताए गए हैं उसे ही रेग्युलेट करने के लिए आईटी रूल्स बनाया गया है।
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‘HC में IT रूल्स को चुनौती देने वाली याचिका SC को ट्रासंफर हो’
सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से गुहार लगाई की अलग-अलग हाई कोर्ट में आईटी रूल्स को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया जाए। उन्होंने कहा कि अलग-अलग हाई कोर्ट अलग-अलग आदेश पारित कर रहा है। ये मामला पूरे भारत का है ऐसे में एक समग्र तस्वीर देखने की जरूरत है। इसलिए केस सुप्रीम कोर्ट के सामने लाया जाना चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर सहमति जताई कि वह जमायत उलेमा ए हिंद और पीस पार्टी की अर्जी के साथ ट्रांसफर पिटिशन को भी देखेगा। अब मामले की अगली सुनवाई 6 हफ्ते बाद होगी।