कोरोना के कारण कावड़ यात्रा बंद हो गयी थी । हालांकि अब दो साल के बाद इस साल फिर से कांवड़ यात्रा शुरू हाेगी।
यह भी पढ़े
श्रीलंका में हिंसा, कोलंबो में उग्र प्रदर्शन, PM ने लगाई इमरजेंसी, सुरक्षा की गई सख्त
भगवान शिव को समर्पित वार्षिक कांवड़ यात्रा सावन के पहले दिन 14 जुलाई से शुरू होगी। यह तीर्थयात्रा श्रावण के पहले दिन शुरू होती है और श्रावण शिवरात्रि तिथि 26 जुलाई को समाप्त होगी।
भोले नाथ सावन में कांवड़ से गंगाजल चढ़ाने से ज्यादा प्रसन्न होते हैं। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि जब समुद्रमंथन के बाद 14 रत्नों में विष भी निकला था और भोलेनाथ ने उस विष का पान करके दुनिया की रक्षा की थी। विषपान करने से उनका कंठ नीला पड़ गया और कहते हैं इसी विष के प्रकोप को कम करने के लिए, उसे ठंडा करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है और इस जलाभिषेक से शिव प्रसन्न होकर आपकी मनोकामनाएं पूर्ण करते है।
मालूम हो कि कांवड़िया एक दूसरे का नाम भोले रखते हैं और अपने महादेव का नाम जपते रहते हैं, जिन्हें प्यार से भोलेनाथ कहा जाता है। कांवड़ यात्रा में पूरे रास्ते बम-बम भोले जपते जाते हैं। कांवड़िया कांवड़ को धारण करते हुए व्रत रखते हैं और नंगे पैर चलते हैं। जब तक भोले बाबा को गंगा जल न अर्पित कर दें कई कांवड़िया अनाज, पानी और नमक का सेवन भी वर्जित रखते हैं।
जानकारी हो कि कांवड़ एक बांस का खंभा होता है, जिसके दोनों ओर रस्सी से लटके दो घड़े होते हैं। कांवरिया कांवड़ को अपने कंधे पर ले जाते हैं और गंगा के पवित्र जल को इकट्ठा करने के लिए यात्रा शुरू करते हैं। कांवड़िया इस बर्तन को भरने के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, गौमुख, गंगोत्री, काशी, सुल्तानगंज आदि स्थानों की यात्रा शुरू करते हैं। देवघर के बाबाधाम में सावन के पूरे एक महीने श्रावणी मेला लगता है। दिलचस्प बात यह है कि कंवड़ों को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
कांवड़ यात्रा के नियम
बैठीः बैठी कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया कांवड़ को जमीन पर रख सकता है।
डाकः डाक कांवड़िया को कांवड़ के साथ दौड़ना पड़ता है, वे रूक नहीं सकते।
खड़ीः खाड़ी कांवड़िया न तो कांवड को लटका सकते हैं और न ही उसे फर्श पर रख सकते हैं। जब वह आराम कर रहे हों तो उसे किसी और को इसे पकड़ने के लिए कहना पड़ता है।
झूलाः झूला कांवड़िया अपने कांवड़ को लटका सकते हैं, लेकिन उसे जमीन पर नहीं रख सकते।