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नंदकिशोर नौटियाल ने गोवा मुक्ति संग्राम में लिया था भाग, जाने उनके बारे में और भी बहुत कुछ

Nandkishor Nautiyal नंदकिशोर नौटियाल ने गोवा मुक्ति संग्राम में लिया था भाग, जाने उनके बारे में और भी बहुत कुछ

नई दिल्ली। भारत में हिंदी पत्रकारिता में अपनी एक खास जगह बनाने वाले नंदकिशोर नौटियाल का आज निधन हो गया। वो एक ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने सही मायनों में सच्ची पत्रकारिता का मतलब समझाया। उन्होंने अपने जीवन के 60 साल देश की पत्रकारिता को दिए और 60 सालों में पत्रकारिता को नई पहचान दी। उन्होंने हमेशा पत्रकारिता के आदर्शो और मुल्यों के चलते अपने जीवन में पत्रकारिता को एक मिशन बना लिया था और उसी मिशन को पूरा करने में उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया। उन्होंने बिना किसी डर के हमेशा सच्ची पत्रकारिता की है। जिसके कारण उनको सच्ची पत्रकारिता के लिए जाना जाता था।

बता दें कि नंदकिशोर नौटियाल ने गोवा मुक्ति संग्राम में भाग लिया था। पृथक हिमालयी राज्य तथा उत्तराखंड राज्य आंदोलन में 1952-53 में सक्रिय हिस्सा लिया तथा बाद में 1999-92 में भी उत्तराखंड आंदोलन से जुड़े। सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न रहते हुए भी नौटियालजी ने पत्रकारिता और लेखन को अपना व्यवसाय बनाया। अनेक साप्ताहिक पत्रों और पत्रिकाओं के लिए काम करते हुए 1962 में उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया, जब मुंबई से साप्ताहिक हिंदी `ब्लिट्ज़’ निकालने के लिए उसके प्रथम संपादक मुनीश सक्सेना और प्रधान संपादक आर के करंजिया ने उन्हें चुना। 10 साल सहायक संपादक रहने के बाद 1973 में नौटियालजी हिंदी `ब्लिट्ज़’ के संपादक बने। 

वहीं हिंदी `ब्लिट्ज़’ और `ब्लिट्ज़’ संस्थान को सामाजिक-सांस्कृतिक जगत से जोड़ने में पहल की और ब्लिट्ज़ नेशनल फोरम के महासचिव रहे, जिसके फलस्वरूप नौटियालजी के संपादनकाल में हिंदी `ब्लिट्ज़’ ने नयी ऊंचाइयों को छूआ। १९९२ में हिंदी `ब्लिट्ज़’ से अवकाश प्राप्त करने के बाद भी नौटियालजी के पत्रकार मन ने चैन से बैठना स्वीकार नहीं किया। १९९३ में उन्होंने पूरे जोश-खरोश के साथ `नूतन सवेरा’ साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया। `नूतन सवेरा’ ने नौटियालजी के कुशल संपादन में शीघ्र ही देश-भर में अपनी पहचान बनायी। `नूतन सवेरा’ ने मानवीय मूल्यों, भारतीय संस्कृति तथा जनपक्षीय पत्रकारिता की हिंदी `ब्लिट्ज़’ की पंरपरा को आगे बढ़ाने में भारी योगदान किया तथा आज भी कर रहा है। राष्ट्रहित के मुद्दों पर `नूतन सवेरा’ और नौटियालजी की दो टूक टिप्पणियों के बारे में अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। 

साथ ही नूतन सवेरा’ के माध्यम से वह राष्ट्रभाषा हिंदी की अस्मिता के लिए तन-मन-धन से संघर्षरत हैं। राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई के उपाध्यक्ष की हैसियत से भारत में पहली बार महासंघ के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ बंबई हाई कोर्ट में हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किये जाने की याचिका दायर की है जो लंबित है। पत्रकारिता के अलावा नौटियालजी प्रगतिशील राजनीति और समाजसेवा के क्षेत्र में भी बदस्तूर सक्रिय हैं। वह महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के स्थापनाकाल से ही सदस्य रहे और इस समय इसके कार्याध्यक्ष हैं। उनके कार्यकाल में पहली बार 2002 में पुणे में अकादमी ने भव्य अंतरराष्ट्रीय हिंदी संगम आयोजित किया तथा पहली बार 2007 में मुंबई, 2009 में नागपुर तथा नांदेड़ में सर्वभारतीय भाषा सम्मेलन संपन्न किया जिसमें 22 भाषाओं के विद्वानों ने भाग लिया। वह उत्तराखंड सरकार में बदरीनाथ – केदारनाथ मंदिर समिति ट्रस्ट ‘ के अध्यक्ष रह चुके थे।

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