- संवाददाता, भारत खबर
मेरठ। जनसंख्या आज के समय का एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है ऐसे में पार्टियों पर दबाव है कि वह अपने एजेंडे में जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने का मुद्दा शामिल करें। यदि ऐसा नहीं होता तो पार्टियों के घोषणापत्र को देखने के बाद निराशा हाथ लगी तो मेरठ हापुड़ लोकसभा क्षेत्र में लगभग दो हजार प्रत्याशी उतार दिए जाएंगे। सेव इंडिया जनफाउण्डेशन के संयोजक व पूर्व पत्रकार राजेश शर्मा बताते हैं कि इस बार लोसभा चुनावों में हमारा प्रमुख मुद्दा रहेगा जनसंख्या पर नियंत्रण संबंधी कानून बनाने का प्रस्ताव यदि कोई पार्टी इस पर बात नहीं करेगी तो हम विरोध स्वरूप हजारों की संख्या में प्रतयाशियों को उतारेंगे।
पहले भी हुआ था ऐसा मामला
ऐसा एक मामला जुलाई 2010 में हुआ था जब उस समय तेलंगाना आंदोलन तेजी पर था। आंध्र विधानसभा के 12 विधायकों ने इस मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था और वे उपचुनाव में दोबारा चुनाव लड़ रहे थे। उस समय भाजपा की वजह से ईवीएम के खिलाफ भी आंदोलन हो रहा था। टेक सैवी माने जाने वाले चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में दलों ने बैलेट पेपर से चुनाव की मांग की।
आयोग ने जब उनकी इस मांग को ठुकरा दिया तो उन्होंने चालाकी दिखाई। ईवीएम मशीनों में अधिकतम 64 प्रत्याशियों के नाम आ सकते थे। ऐसे में टीआरएस ने निर्दलीयों से बड़ी संख्या में नामांकन भरवा दिए। बड़े पैमाने पर नामांकन खारिज किए जाने के बावजूद 12 में से छह सीटों पर उम्मीदवारों की संख्या 64 से ज्यादा हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि आयोग को इन छह सीटों पर बैलट पेपर से मतदान कराना पड़ा।
लेकिन आयोग ने इस मौके को दोनों प्रणालियों की ताकत दिखाने के तौर पर लिया। जिन इलाकों में मतदान ईवीएम से हुआ था वहां के परिणाम तो चार घंटे में आ गए, लेकिन मतपत्रों वाले इलाकों में 40 घंटे लग गए। इसके अलावा हजारों वोट अवैध हो गए। बैलेट पेपर का खर्च और स्टाफ की लंबी ड्यूटी का अलग भार था। जबकि, दोनों ही प्रक्रियाओं में रिजल्ट एक सा था। इसलिए इस एक्सरसाइज से उन्हें क्या मिला?