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सरसंघचालक ने किया सीएए और राम मंदिर का जिक्र, कहा-मुस्लिमों को नहीं देश में खतरा

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नागपुर। कोरोना के कारण नागपुर में केवल 50 स्वंयसेवकों के साथ विजयदशमी के मौके पर आज रविवार को राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघसंचालक मोहन भागवत जी ने एक संबोध किया। जिसमें उन्होंनेे कश्मीर से धारा 370 और नागरकता संशोधन कानून को लेकर चर्चा की। इसके आगे मोहन भागवत ने कहा कि इतिहास में ये पहली बार है जब इतने कम स्वंयसेवक कार्यक्रम में उपस्थित हुए हैं। इसी के साथ मोहन भागवत का संबोधन सुनने के लिए देश और दुनिया के स्वंयसेवक आॅनलाइन जुड़े।

बता दें कि कोरोना काल में सभी बड़े कार्यक्रम एक छोटे हिस्से में ही सिमट कर रह गए हैं। सभी कार्यक्रमों को ऑनलाइन किया जा रहा है। विजयदशमी उतब के मौके पर संबोधन किया। जिसमें कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने और खास तौर से राम मंदिर का जिक्र किया। उन्होंने कहा, विजयादशमी के पहले ही 370 प्रभावहीन हो गया था। संसद में उसकी पूरी प्रक्रिया हुई। वहीं विजयादशमी के बाद नौ नवंबर को राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का असंदिग्ध फैसला आया।  जिसे पूरे देश ने स्वीकार किया। पांच अगस्त को राम मंदिर निर्माण का जो पूजन हुआ, उसमें भी, उस वातावरण की पवित्रता को देखा और संयम और समझदारी को भी देखा। उन्होंने कहा, ”इस महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही यह तो कहा ही जा सकता है, परंतु भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने किया वह तो सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है।” देश के वातावरण में तनाव होने लगा। इसका क्या उपाय हो, यह सोच विचार से पहले ही कोरोना काल आ गया। मन की सांप्रदायिक आग मन में ही रह गई। कोरोना की परिस्थिति आ गई। जितनी प्रतिक्रिया होनी थी, उतनी नहीं हुई। पूरी दुनिया में ऐसा ही दिखता है। बहुत सारी घटनाएं हुईं हैं, लेकिन चर्चा कोरोना की ही हुई।

आरएसएस के इस प्रमुख वार्षिक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा, नागरिकता संशोधन कानून भी संसद की पूरी प्रक्रिया के बाद पास हुआ। पड़ोसी देशों में दो तीन देश ऐसे हैं, जहां सांप्रदायिक कारणों से उस देश के निवासियों को प्रताड़ित करने का इतिहास है। उन लोगों को जाने के लिए दूसरी जगह नहीं है, भारत ही आते हैं। विस्थापित और पीड़ित यहां पर जल्दी बस जाएं, इसलिए अधिनियम में कुछ संशोधन करने का प्रावधान था। जो भारत के नागरिक हैं, उनके लिए कुछ खतरा नहीं था। मोहन भागवत ने कहा, ”नागरिकता संशोधन अधिनियम कानून का विरोध करने वाले भी थे. राजनीति में तो ऐसा चलता ही है। ऐसा वातावरण बनाया कि इस देश में मुसलमानों की संख्या न बढ़े, इसलिए नियम लाया। जिससे प्रदर्शन आदि होने लगे।

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